Monday 8 May 2017

तो मुश्किल होगी ...



चलो तुमसे तुम्हारी ही बात की जाये
गर औरों से कहेंगे तो दास्ताँ होगी ...

गुफ्तगू की कोशिश लब हिलंगे मगर
ये इक शय तो आँखों से बयां होगी ...


सरसरते पत्ते थरथर्राती देह का कंपन
धड़कते लम्हे हमारी गुफ्तगू होगी ...

कदम मचल दौड़ेंगे तुम्हारी तरफ को
बाँह भर रोकोगे वहीँ सीमा होगी ...

पलकों को मूँद कर, छिपा लूँ तुमको
सागर जो छल्के तो मुश्किल होगी ...

© Lata

No comments:

Post a Comment