Sunday 14 May 2017

जी के तो देखो





कभी फूलों की खुशबू हो के तो देखो
पलों से ह्ल्की हवा संग तैर के देखो
कभी रंगो सा मिल बिखरना तो सीखो
मनतरंग को सरगम में घुलते देखो
रेत कण से बन के तो बिखरो जमीं पे
तल से परबत-शिखर छूके तो आओ..!
कभी जल की बूँद बन छिटक तप्त पे
अग्निशिखा को धुआं हो मिटते देखो
चमकते बलूवर कण की चमक हो तुम
कुदरती करिश्मे में जी के तो देखो
कभी उस काल के रथ पे बैठ तो देखो
तिस्लिमआस्मां पे टहल के तो आओ ..!
© लता 
15 - 05 - 2017

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