कभी फूलों की खुशबू हो के तो देखो
पलों से ह्ल्की हवा संग तैर के देखो
कभी रंगो सा मिल बिखरना तो सीखो
मनतरंग को सरगम में घुलते देखो
रेत कण से बन के तो बिखरो जमीं पे
तल से परबत-शिखर छूके तो आओ..!
कभी जल की बूँद बन छिटक तप्त पे
अग्निशिखा को धुआं हो मिटते देखो
चमकते बलूवर कण की चमक हो तुम
कुदरती करिश्मे में जी के तो देखो
कभी उस काल के रथ पे बैठ तो देखो
तिस्लिमआस्मां पे टहल के तो आओ ..!
© लता
15 - 05 - 2017
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