Friday, 12 May 2017

"उसके" मेल







नसीबों के खेल, नसीबों कैद, "उसके" मेल है
हर चिंगारी तो आग का सैलाब नहीं होती है

न जाने कौन चिंगारी की सुलगन से भड़ककर 
कोई शमा हौले से घुलती और पिघलती है

चटकती लौ में डगमग जलती संभल कहती है
राख ही है अंत पतंगे चहुँ तू क्यूँ डोलता है

कहे पतंगा तेरी दहकती अगन को हवा देता हूँ
संग-संग सुलग मर जाऊं नसीब ही तो है

अपनी लौ की तपिश में कैद फ़ना जो होती है
कहती- इश्क़ है ! जिस पे फ़िदा होती है

मोहब्बत में  इश्क़ में फर्क पे इतना ही बोली  
इसमें जवाब वो लाजवाब, कह धुआं होती है  

© Lata 
11 - 05 - 2017
In respect and honor of love, love is feeling only attraction which allows a being to "lit" and converts in being.

No comments:

Post a Comment