Wednesday, 24 February 2016

मिलती कोरी-कुँआरी है....



सुनाने आज बैठे जो जिंदगी का शगूफा उनको कि 
सच मौत से शुरू और यही पे खत्म है। 

कहा उसने,' देना है जिंदगी मय की खुराक पिला-

मौत के कदमो की अभी आहट न सुना'।

नादाँ से क्या कहिये ये जो जिंदगी की किताब है

लिखा पहला आखिरी लब्ज यही तो है।  

रंग भरो शौक से ! पूरी की पूरी किताब तुम्हारी है

सफ़ेद कागज की सफेदी को याद रखना। 

याद रखना इसके हर पन्ने पे हजारों रंग बिखरे है

शुरू और अंत में मिलती कोरी-कुँआरी है। 



24 02 2016

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