Tuesday 23 February 2016

करुणामय दयावान "वो" चाहता है !



सुना है चिर-दयावान ने फिर किसी को -
मित्र का ख़िताब दिया ,
अपने पास बुलाया , प्यार से सहलाया-
फिर घुटने पे बैठाया
प्रेम से कुछ दाने खिला आश्वासन दिया-
दो वख्त रोटी का
मौसम से बचाव का वादा कर , देह को -
वस्त्रो से लाद दिया
प्रकर्ति के विपरीत चल स्वउपलब्धियों -
की शान से बंधे हुए

पुचकारते पट्टा बाँध एक एक को
धीरे से पालतू बना लिया
अलगअलग दायित्व सौंप जिम्मेदारी-
का पाठ प्रेम से पढ़ा दिया
तो कोई पिंजरे में गीत गाता, अद्भुत !
वो दयावान प्रशंसा पाता है
वो पालतू बन आज भी उसी मित्रता का
आश्वासन तले बोझ ढोता है

औ चतुर सुजान करुणामय दयावान
अपने ही जैसे दूसरे को
मानवता को संवेदनाओं का पथ देता
भाव संवेदनाओ से बाँध -
मित्र कहता , चाहता ! उस "एक" मे वे
चार गुण सिमट आ जाएँ
क्यूंकि मनुष्य सामाजिक है, दयावान
करुणायुक्त धार्मिक है
वही अब आध्यात्मिक हो उन मित्रों को
नेति नेति के संदेश देता है
कहे-'किसी और से नहीं अपने दिल औ-
दिमाग से तेरा हाल-बेहाल है'


22 02 2016

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