दुकानो के सैलाब है, खरीदारों की भीड़ बेशुमार है
बे-साख्ता गफलत में उसे अपनाना सरल होता है
चल पड़े ही हो अगर ! तो चलते ही जाना मुसाफिर
फिसले तो ठीक है लौटना मुम्किन न कभी होता है
ऐसा भी होता है अक्सर रिन्द के मैखाने में जाकर
उसका जाम पकड़ें कि पहले खुद को पीना होता है
उसको समझने से पहले, खुद को समझना होता है
अदब से सर झुके पहले खुद रूह से मिलना होता है
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