Wednesday, 25 November 2015

न कीजे



नजदीकी झरोंखो से, खंडहरों का दीदार न कीजे
कायनात के इशारों को इतना हल्का भी न कीजे

नदी-धार में बहाव, आकर्षण संग, खिंचाव भी है
पुल मध्य खड़े इस खिंचाव को महसूस भी कीजे

मध्यस्थान कहे खिंचाव जुड़ाव यहाँ-वहाँ अटका
कुछ साथ आएंगे यहाँ से कुछ साथ छोड़ जाएंगे

धुंध के साये है गहरे, आसानी से कुछ न दिखेगा
इसपार से खड़े है तो उसपार का अंदाजा न कीजे

मुड़ मुड़ के न देखिये यूँ हसरतों से उन्हें बार बार
ये रास्ता आधा ही चले आप आधा अभी बाकी है

उसपार से पलट देखेंगे राह खुद अपना पता देगी
यूँ अटकलों का बाजार, अफवाहों से गर्म न कीजे

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