
शम्मा जलती रही
वख्त गुजरता रहा
लौ थरथराती रही
कुछ पिघलता रहा
और सुलगता रहा
नैन नम होते गए
रौशनी और रौशन होती गयी
.
सुबह होती रही
शाम ढलती रही
वख्त बहता रहा
सूरज उगता रहा
चाँद चमकता रहा
इक सोना पहनाता
दूजा चांदी से नहलाता गया
.
तारे टिमटिमाते रहे
इशारा वो देता रहा
खामोश देखते रहे
पल पल बिना रुके
वो जाम भरता रहा
घूंट - घूंट पीते गए
यूँ जीते गए , मुस्कराते गए
.
हम मुस्कराये ही बस
वो खिलखिलाता गया
कागज की इक कश्ती
समंदर में डोलती रही
वजूद "पंख" होता रहा
सब रंग सुर्ख होते रहे
यूँ सफर अपना पूरा करते गए