Friday, 3 April 2015

यूँ सफर अपना पूरा करते गए



शम्मा जलती रही
वख्त गुजरता रहा
लौ थरथराती रही
कुछ पिघलता रहा
और सुलगता रहा
नैन नम होते गए
रौशनी और रौशन होती गयी
.
सुबह होती रही
शाम ढलती रही
वख्त बहता रहा
सूरज उगता रहा
चाँद चमकता रहा
इक सोना पहनाता
दूजा चांदी से नहलाता गया
.
तारे टिमटिमाते रहे
इशारा वो देता रहा
खामोश देखते रहे
पल पल बिना रुके
वो जाम भरता रहा
घूंट - घूंट पीते गए
यूँ जीते गए , मुस्कराते गए
.
हम मुस्कराये ही बस
वो खिलखिलाता गया
कागज की इक कश्ती
समंदर में डोलती रही
वजूद "पंख" होता रहा
सब रंग सुर्ख होते रहे
यूँ सफर अपना पूरा करते गए

मुझ में मौन रहता है ...


बहुत शोर उठता है
भीड़ में  दुकानों में
इस एक , कोने में
मुझ में मौन रहता है ...
.
कशिश,शिद्धत से
हाथ थामो तो सही
जीवन तरंगित सा
मुझे महसूस होता है ...
.
कह के न कह पाया
रुका वख्त इस पल
गहननिस्तब्धता में
मधु सदृश उतरता है …
.

खामोश सदाये


खंडहर सुनाते है कहानियां अपनी बीती 
सुन पाओ तो सुन लेना, खामोश सदाये
.
ढलता-उगता सूरज समेटे कितनी गाथा
जीर्णवृक्ष पाश में सम्भली ढहती दीवालें
.
कभी लोग रहते थे यहां शानो-शौकत से
सन्नाटे गूंजते है, कहने लगी झड़ती ईंटें
.
नवाबी शान शौकत इमारतें गुलजार थी
रुकते-घूमते-गुजर जाते है जहाँ शौक़ीन
.
ख्वाहिश रंजिशों जज्बात ये ताना बाना
कुलबुलाहट का अगरबत्ती सा ..सुलगना
.
इंसानी फितरत समझके नासमझ होना
जिए जाते यूँ ज्यूँ जाना नहीं यहाँसे कभी
.
इतिह्रास आज को द्रौपदीचीर उढ़ाता रहा
गहनमौन वर्तमान भविष्य भी ठगासा है

आह्वान अद्वैत का



आओ ! तरंगो से सजें हम 
लहरें खेलें अठखेलियां 
नैया पे बैठे  डोलें हम............
.
आओ ! नदिया से रहें हम
बूंदों में मिल चंचल से
विद्युत बन बहे हम.............
.
आओ ! बौछारों में बसें हम
बहतेबहते धारा बन पुनः
सागर से जा मिले हम...........
.
आओ ! स्वपहचान बने हम
आह्वान द्वित्व-खडिंत
अद्वैतरथ पे सवार हम ...........

तेरा न मेरा



 चुन चुन तिनका बनाया बसेरा
पल पल जुड़ गुथा ताना बाना !

.
क्षण क्षण जोड़ नेहधागा बांधा 
अनूठा महल देवप्रेम से नहाया !


.
तरंगित तरंग में डूबा दिल-डेरा
विचार जनित गृह तेरा न मेरा !


The Flawlessness

it's a true nature of flawlessness
stone sand flows with clean water ..
.
some rubbing some smashing and
lagoon of heart finally get set in down ...
.
or throw away through powerful waves
wise finds always clean water deep-inside

Translation :-

यह शुचिता का स्वभाव है
पत्थर रेत साफ पानी के साथ बहती है

कुछ रगड़ना कुछ मसलना और
स्वक्छ जल का स्त्रोत अन्तस्तम में स्थित

या शक्तिशाली तरंगों के माध्यम से दूर फेंक
बुद्धिमान हमेशा साफ पानी गहरे अंदर पाता है 

Wednesday, 1 April 2015

मुझे भ्रम होता है

अजीब है ज़िंदगी !


भ्रम  का अथाह  सागर 
आस्था  की छोटी  नाव में बैठ 
प्रेमलहरों में हिचकोले खाता हुआ -
छाया भासित प्रियतम  के पीछे  
मृगमरीचिका सी गंध पीछे  भागता तो हूँ !

भ्रम  की  इस  नगरी  में
भ्रमों के   साथ  ही  भ्रमित जीता-
भ्रमो  के  साथ ही पुनः सो  जाता तो  हूँ !

कुछ भ्रमों  की खातिर  फिर-
स्वप्नों   से सुबह जागता  हूँ , या  के
कुछ जागा सा दिखता तो हूँ 
कुछ सोया  हुआ  भी जरूर रहता तो  हूँ !

किसी  सच  का फैसला
एकतरफा  हो  भी  तो  कैसे  हो
या  तो   दोनों  सिरों  पे  सच  है
या फिर भ्रम ही भ्रम  का  साया  है !

भ्रम  जो सबमे  प्रकाश  दिखता है
मुझमें  जैसा ही कोई  सबमें  रहता है 
तुला का आधार बना मुझ जैसा 
कसौटी पे खुद को जरूर कसता  तो है !

हर  कोई अधीर मुझ  सा लगता 
दिव्यता  का  दिया सभी में जलता तो  है
सभी  में  शीतल जलधार  का सोता  है
भ्रम की हर एक की पीड़ा में 
आस का दीप एक सा जलता  तो है !

पल  भर  में सब में से  होके
सब को खुद में  समाना चाहता  हूँ
इस तरह  खुद को ही मैं
हर बार रत्ती रत्ती करता  तो हूँ !

बेवकूफ बनने की ख़ातिर ही
सब तरफ अपने को लिये-लिये फिरता हूँ,
लेने  देने  का नाम  अध्यात्म  गुरु शिष्य 
और यह देख-देख बड़ा मज़ा आता है
कि मैं बार  बार खुद से ही  ठगा जाता तो  हूँ !

मेरे ही हृदय में प्रसन्नचित्त 
एक मूर्खानंद  बैठा है
हंस-हंसकर अश्रुपूर्ण द्रवित कृतज्ञ सा
ध्यानी खुद में सूफी मत्त हुआ जाता  तो  है !


( प्रेरणा कवि गजानन माधव मुक्तिबोध से )