Friday, 5 December 2014

To Love you ,





to love you not to obligation

it's absolutely my pleasure 



if wander around is destiny


it's absolutely my pleasure 



it's not cross cheque to cash


it's absolutely my pleasure 



it's nothing to desire or wish 


it's absolutely my pleasure 



my dedication,determination 


it's absolutely my pleasure 



my sensations wise-light-path


it's absolutely my pleasure 


डूबते दोनों है निसंदेह !




बुद्ध नगर और बुद्धि नगर 

बहुत पास  और बहुत दूर भी


बुद्ध का घेरा पूरा करना ही है 
,
सबकी मति और अपनी गति


कुछ सीख के तैर रहे वो शिष्य 

कोई सिखा के तैर रहा  वो गुरु 


कोई डूब के पार हुआ रूमी बन 

सागर सभीका जहाज़ अपने है 


बड़े  जहाज में चढ़े गए हजारो,

छोटी नाव भी तो पार उतारती


डूबते दोनों  है निसंदेह,अंत में 

अब तुम्हें जो चाहिए, चुन लो !

The circle Of you and I



Under the thought to understand Budhha's Intellectual development and his life grows as common man to enlightened one ! 

don't read only just his saying as super devotee , go beyond ! its real worship , just dive behind saying In Ocean of mind .

Just walk ahead from draw the line of mind or minds , just go more deep not even self , yes more from front is . 


its complete the circle of one thought . you have to walk only one step , you may take time as your wish

Many circles bubbly , lighted and light 

अनेक घेरे पोले , प्रकाशयुक्त और भारहीन 


moving towards up n up

ऊपर को और ऊपर को चलते


small big get dilute one day hv own rhythm

छोटे बड़े घुलते एक दिन अपनी ही ताल लय में 


moving down to up is life 

ऊपर नीचे जाता जीवन है


no mystery behind to know what is full 

ये जानना रहस्यमयी नहीं की पूर्ण घेरा क्या है 


its me and you , no doubt !

ये मैं हूँ और तुम हो , संदेह नहीं ! !


Thursday, 4 December 2014

मुसाफिर !




यूँ  कुछ  नहीं हो जाता मुसाफिर 

सदियों में फासला तै किया होगा


होश  संभाल  के वो नूर रौशन है 

भावों  का जखिड़ा  बनने न पाये


भावों  के बहाव  को  जानो,यार ! 

रिश्ते  आंधियों से  उखड जायेंगे


खारे  सैलाब को बांध न मिलेगा 

प्रेम केआंसू भी ढाल नहों पाएंगे


कंधे पे नाहक  टंगे  इस झोले में 

कंकड़ पत्थर में यूँ समय न गवां


बे-मोल  सारी कवायतें, ग़ाफ़िल !

शहँशाएशान में तू अकेला काफी


उस के आगे नहीं इनका मोल है

यही छोड़ सब,आगे बढ़ जाना है



Om

Wednesday, 3 December 2014

तीन स्तर में फैला माया का प्रथम साम्राज्य विशाल

-: कविता की पृष्ठभूमि :- 

        संकेतो की इस दुनिया में संकेत ही संकेत मिलते है की कविता में  प्रश्न भी संकेत है , किन्तु स्पष्ट करना चाहती हूँ की ' समस्त कविता प्रश्न नहीं वरन एक पूर्ण उत्तर है ' ,  माया की गहराई खंगालने में ये स्वयं प्रश्न बन के उभरी है , यहाँ सिर्फ मनुष्य को उसी की स्थति पुनः बताने की चेष्टा है , कैसे सभी जीव अपने अपने जीवन में अपने अपने नियत स्थान में रहते हुए संघर्षयुक्त है ,

        ये तो माया की पृथ्वी पे सबसे पहली पर्त है जो तीन भागों में बंटी है .. वायु जल और थल जीव जगत कथा का तो हम सभी जानते है किन्तु यहाँ जल जीवन का उदाहरण-वर्णन है जो थल के समान ही कठनाईयों और संघर्षों से भरा है मनुष्य का झूठा दम्भ की वो अकेला बुद्धिजीवी है अकेला पृथ्वी का मालिक है किन्तुं विचारणीय ये है की  मनुष्य में ऐसा क्या खास दिया है अकारण परमात्मा ने सिर्फ ब्रह्माण्ड का प्रकटीकरण किया किन्तु  इसमें जो इंसान की रचना  वो अकारण नहीं परमात्मा ने जो सकारण है मानव की रचना और विकास  की प्रेरणा दी किन्तु माया से रंग के  कर्त्तव्य हमने भुला हुआ ! ( यदि प्रश्न है तो समस्त प्रश्न अंतर मंथन के लिए , की शायद इस समुद्र-मंथन से वो सत्य याद आ जाये ) शुक्रिया मेरे दोस्त Shivputra Chaitanya का जिन्होने इस कविता के अधूरेपन की तरफ संकेत किया और भूमिका में लिख के इस भाव को अधिक  स्पष्ट  कर रही हूँ , 

पुनः शुक्रिया , आभार।  प्रणाम।  



तीन स्तर  में फैला माया का प्रथम  साम्राज्य विशाल
चलो विहारें आज उस जलचर माया का संसार
ये खेल संसार , यहाँ भी  घेरे जन्म गर्भ
संयोग  और  भाग्य कर्म परिणाम
कर्मयुक्त जीवन जीते यहाँ भी
मौन फल भोग जीते  मरते
जल की अथाह गहराई में 
जीवन निर्धारण करता 
इनका दृष्टा कौन ?


नीला  समुद्र अथाह लहराती लहरें उन्नत सूक्ष्म
विशाल  मंझोले सूक्ष्म जीवों को पोषित करता 
तैरती  छोटी  बड़ी  मछलियाँ मध्य स्तर में ,
उथलायी गहराई में अन्य जीवों का वास 
संघर्ष युक्त सभी यहाँ जीवन  जीते
गहरे उथले का बंटवारा करता
जीवन का सञ्चालनकर्ता 
वो रहस्यमयी कौन ?


जलजन्म स्तर पूर्व नियत,बिन जाने अंजान
अपनी सीमाओं  में तिरते अथाह जल में
उथले , गहरे और अथाह जलस्तर पे
अपना डेरा  बना  परिवार भी बनाते
सीमाओं में ही दीर्घकाल से धैर्य से
मृत्यु का आलिंगन करते जाते 
आखिर वो योगी कौन ?


वो योगी सिखाता सीमाओं का पाठ जो इनको 
बौद्धिक स्तर भी नियत करता जाता
भावपूर्ण  मछलियाँ भी अनमोल 
बुध्ही सौंदर्य की  है स्वामिनी 
हठ क्रोध ईर्षया द्वेष युक्त 
गर्व से इठलाती निरंतर
सीमा में तैरती जाती
निर्देशक वो कौन ?


आह ! अचरज एक भारी कथा पटकथा समान
जीवनकरतब एक समान  जलथल चरअचर
हुए घेरे  द्विगुणित घेरों के असंख्य  फेरे
जलप्राणी  थलप्राणी वायुप्राणी एक
सबमे ही युति  दैत्य देव वृत्ति
अलग क्या है इस मानव में
धुनि रमा  बैठा कौन ? 

Monday, 1 December 2014

The Being



Though do not know exact
my starting point of this life circle 
still  from where i can see
lets start to walk on round wheel 

"I" get separated to Source 
and fells down with my own gravity
in start, i was tiny single cell 
haves own senses  sound and soul 

My energy  spread in still
running  flying  swimming creatures 
my growth clear indication
of my love , my respect , my regards 

My existence is everywhere 
in grass , in trees , in  running things 
in water.  in Air , even cell
I've not forget very own being of LOVE 

मदहोश !

जिंदगी का नशा तो शराब से भी गहरा है और मदहोशी : पता नहीं  कब और कैसे टूटेगी ! 



इतिहास के पन्ने फिर से फड़फड़ाते है 

मानो अपने होने का अहसास एकबार फिर देजाते है


वो फिर से कहानी जवान होती है 

वो  आवाजें  गूंजती फिर वो ही दास्ताँ सुनाई देती है


कहती है ग़ाफ़िल गाफिलियत छोड़ दे 

योगी ज्ञानी  भोगी राजा अपना समय जिए ; चले गए


टुकड़ों में बंटा कुछ वर्षो में फैला 

मानव  जीवन  इतिहास  यूँ  तो  करोड़ों  वर्षों पुराना है


तुम्हारा जीवन सिमित उतना ही है 

युवादेह में खेलती साँसे वृध्ह की बीमारी न सह पाएंगी


यहाँ कितना भोग पायेगा ! नशा छोडो !

ये कैसी मदहोशी है देखो जरा मौत भी दस्तक देती है