Sunday, 26 June 2016

और ये भी एक बात




बात निकली तो दूर तक जा -
टहल घूम के वापिस आएगी 
बातों की भीड़ में बातें
कभी गुम नहीं होती

अजीब बात है .....................!!

ये आज की बात नहीं
सदियों के सिलसिले है
यही सब देख जान समझ के
उसने कहा होगा शायद की
यहाँ कुछ मरता नहीं
फिर लौटता है फिर जन्म लेता है
पत्थरों पे लिखी बोलिया
पत्तों पे लिखी इबारतें
या स्याही से गुजरते हुए
कागज पे उतर आई हों
क्या फर्क पड़ता है 

उस एक बात को ..................!!
एक बात ,
नित नूतन या चिर नूतन
हमेशा सजती-संवरती
कभी ... समय से सहमी
तो कभी खामोश हो
उसी के आगोश में सिमट गयी ...!!

इस के कितने वस्त्र
रगीं आकार प्रकार के पहनावे
कितने आभूषण , श्रृंगार
सम्मोहित करने को तैयार
बाहर मुखर बेबाक निकल गयी
कभी अंतस को धारा मुड़ गयी
ऐसी अनेक बातों की
एक एक कतार में
लगी सदियों से
अनगिनत मासूम शख्सियतें........!!

जीवन की अगन
ललक समेटे .....
थोड़े निरन्तर जन्म लेते
और मिटते अरमान
जिनमे सुलगन -
तपन भी शामिल ....................!!

ये फूंक .... वो फूंक ,
ये बचा लिया ... लो वो जल गया
हवा में हवा सी लहराती
बातों की चिंगारियां
जलती बुझती चमकती
जुगनू सी .............................!!

इन्ही बातों की चिंगारी से
हवा में .....हवा जैसे
बा_मुशक्कत जलते बुझते
ये जुगनू से चिराग ,
कुछ हमारे हैं तो
कुछ तुम्हारे भी हैं ........... .....!!

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