चाहे जैसी भावनाएं उठती हों ह्रदय में
भक्ती , शक्ती ; प्रेम ; मित्रता ; वैराग्य
ढलान की नदीया प्रवाह का शोर मचाये
रे ! जल-चल-छल मत, बह तू सावधान !
माया के जाल अनेक, मृग मत फंस तू
मीरा सूर कबीर, बुद्ध तुलसी वाल्मीकि
राजनैतक सामाजिक मानसिक ह्रादयी
भक्ति आधार तो शक्तिप्रदर्श के कारन
तरंगो के जाल ध्यान राह उतरे ज्ञानी के
मंदिर में मन्त्र बने , मस्जिद में आयतें
कलम की राह बहचले थे तर्क शास्त्री के
ब्रश रंग के मेल बन गए वो चित्रकार के
नर्तन का आधार बन गए नृत्यांगना के
संगीत में बहगए गीत के आरोहअवरोह
हृदय में घुमड़घुमड़ के छंदों का आधार
उदाहरण है सब नदी के प्रवाह के मूरख !
प्रवाहित अनंत समयकाल बहती छद्म
परिवर्तन-शील मायावी छद्म भावनाए
अपने छद्मजीवनप्रवाह का शोर सुनाये
रे! जल-चल-चल-मत रुक, तू सावधान !
सुगंध सी फैली रंगो सी बिखरी भावनाएं
परिवर्तित है परिवर्तनशीलअस्तित्व संग
धरा के टुकड़े पे जिस पलक्षण उठें वेग से
देखो अंध वो अंश आगे बढ़ गया कब का !
तुम रुके खड़े छद्म भावों की छाया संग
अपनी मूर्खताओं का परिचय देतेलेते रहे
अपने उम्र के चढाव का उतार देखते रहे
कारवां गुजर गया और गुबार देखते रहे !!
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