री ! जीवनदायनी अमृत जल सरिता जीवन की
यूँ बह निकलो इस बाड़ी के मध्यस्थल आँगन से
न्यारी क्यारी सुगन्ध सुन्दर पुष्प पल्लवित हो जाना ....
जहाँ खग की उड़ान ऊँची, मृग कुलांचे लम्बी हो
तितली का सौंदर्य निखरे उनकी नन्ही उड़ानों में
शुष्क हुआ मातु ह्रदय, शीतल फुहार से नम कर जाना ....
नील नीर से बोझिल श्याम मेघ घन-बन गर्ज करे
जब ज्ञान-विद्युत चमक लहरा अंतर्मन प्रेरित करे
चतुर दिशाओं से चतुर निडर तरंग नाभि में बस जाना …
खग की उड़ान - बृहत्तम पे विश्वास
मृग की कुलांचे - स्वप्न की बृहत् छलांग
तितली का सौंदर्य - छोटी छोटी प्रसन्नताएं
माता स्वयं की आत्मा
मध्यस्थल आँगन - ह्रदय स्थान
सरिता - जीवन की
बाड़ी ( वाटिका ) - देह
चतुर - चार
चतुर - सुजान
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