Saturday, 17 October 2015

रे पथिक चल संग में निहुरे निहुरे



रे पथिक ! चल संग में निहुरे निहुरे 
संभल के , संभल  चल , हौले-हौले
गुन सगुन निर्गुन से परे , संकेत है  
मध्यम स्वर बोलों पे तू गाता चल

निहुरे निहुरे !!

वृत्ति की आवृत्तियाँ पुनरावृत्ति के राग 
वीणा मधुर  बजती नगाड़े  देते ताल 
दुंदुभी  के स्वर बसे रणभेरी  के बीच 
संभल, राह पतली गली ,चलता चल

निहुरे निहुरे !!

रंग बदले आस्मां  रंग बदले ये जमीं 
कैसे कदम थमे गति में दूरतक मति 
महीन श्वांस डोर,थाम चल,संभल तू  
अपने कदम से कदम मिला, चल तू

निहुरे निहुरे !!

माया उस मायावी की नतमस्तक हम 
सप्तक असंख्य योग, सा-नि पहरेदार  
प्रिय मध्यम मार्ग रुको तो, जरा थमो 
आसदीप की जोत जगा आते तेरे संग 

निहुरे निहुरे !!


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