मौन जन्मना मौन खिलना
रंग स्नानित सुगन्ध भरपूर
मौन ही मुरझा गिर जाना
नहीं समझ पाये अभी तक
मेरी भाषा तुम सुनते क्या ?
मूक समझते हम सबको
भाषा का अस्तित्व ही क्या
सांस्कृतिक सामाजिक जो
जितने ज्ञानी उतने अज्ञानी
अ-अभिव्यक्त अव्यक्त है
मूक की भाषा परम सहज
उड़ता पक्षी ये बहता पानी
उन्नत श्रेष्ठ खड़ा फलधारी
गिरती पत्ती उड़ती तितली
हवा को बहते देखा क्या ?
देखो कृति नर्तन ओ गायन
करो संवाद कभी तो मुझसे
बैठो पल को मेरे संग कभी
भूल जाओगे संज्ञान तुम्हारा
कभी मौन वक्ता बने क्या ?
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