उसके मुल्क का दस्तूर भी निराला है
सहज सरल प्रेमबद्ध , प्राण से भरपूर
समझ के भी समझ कुछ आता नहीं है
कौड़ी का देन , तो कौड़ी का ठहरा लेन
व्यापार व्यापारी का , खिलाडी का खेल
तथास्तु कहे प्रियतम चिरस्मित साथ
खेलना है ! खेलो , कर्म चक्की है , दौड़ो
थक गए ! जितना लम्बा चाहो , सो लो
जितने स्वप्न देखना चाहो; देख लो प्रिय
जागे,निश्चित मुझे ही पाओगे " तथास्तु ! "
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