Sunday, 19 November 2017

सपने जागती आँखों के

नाजुक पल जो घट गए कुछ क्षणों की तरह
और ! ठहर गया हर पल एक साल की तरह
वो जो कह के भी नहीं कहा, कैसे कहूं उन्हें 
महसूस मैंने किया कहो कैसे कहूँ सब तुम्हे

(Sat 18 Nov 2017, 21:59)

बीती रात 
खुली आँखों से 
देख़ा मैंने
सजी नुमाईश
दुकानों की 
लगा सामान
करीने से
जगमगाहट
रौशनी की....
उस नुमाईश में
कुछ थे मौन
कुछ मुखर
भीड़ में पर
सभी अकेले .....
ये एक दो
की नहीं समूचे
हुजूम की है बात
क्या नन्हे
क्या बूढ़े
और सभी युवा
अपनी यात्रा के
साक्षी किन्तु संग
सहयोगी भी थे
स्व समूह की
सामूहिक यात्रा के
वे सभी, जो कभी
हस्तयंत्र की
तरंग से जुड़ते
तो कभी
मुस्करा के
आसपास की
तरंग से जुड़ते
पर थे सभी
संग संग
बीती रात
मुट्ठी भर
नाजुक पल
जो घट गए
कुछ क्षणों
की तरह ...
और
ठहर गया
हर पल,
एक साल की तरह
वो जो
कह के भी
नहीं कहा
कैसे कहूं उन्हें.......
महसूस
मैंने किया
कहो ......!
कैसे कहूँ सब तुम्हे ?
मदहोशी का आलम
गजब नशे का दौर
उन हालातों में
जो घट गए
कुछ क्षणों
की तरह ...
और
ठहर गया
हर पल,
एक साल की तरह
कैसे कहूं उन्हें.......
महसूस
मैंने किया
कहो ......!
कैसे कहूँ सब तुम्हे ?


© लता 
completed by Sun 19 Nov 2017, 09:07

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