एक बेहतरीन ग़ज़ल को एक बेहतरीन साज, छिड़ी सुन्दर गंभीर
आवाज़ मिले जानो मिलन हुआ
इसी तरह बेहतरीन आवाज को बेहतरीन ग़ज़ल और गठा हुआ
साज मिले तो जानो मिलन हुआ
इठलाती तूलिका बोल पड़ी- रंगो का साथ तब दूंगी, जब कलाकार
की उंगलियाँ मुझे आ के मिले
कलाकार बोल पड़ा- उत्तम चित्र तब बनाऊंगा जब रेखाएं ठीक से
बने तब जाके रंग भर पाऊंगा
यशस्विता बोली मुझे कर्मठता से मिलन चाहिए लो सम्मान अंगडाया
मुझे भी ऐसा मिलन चाहिए
देह भी कैसे चुप रहती यकबायक बोल पड़ी- मुझे भी तो अंतर स्थति
स्व-आत्मा से मिलन चाहिए
देह की बात सुन अचकचाई जरा आत्मा बोली- तुमसे नहीं मुझे परम्
आत्मा से ही मिलन चाहिए
कब से परमात्मा भी कुछ बोल रहा, मौन गहरा, मौन में ही सुना उसे
भी समतुल्य मिलन चाहिए
पर आखिर ये मिलन है कहाँ जो सब को चाहिए तो असमंजस जान
के मिलन खुद ही बोल पड़ा-
मैं सुखद दुखद दो पलड़ों का संजोग हूँ जो खुद अधूरा है अपने पूर्ण
मिलन को युग में विचरता हूँ
कड़ी से कड़ी जुड़ती बनती शृंखला का नन्हा सा जोड़ हूँ,मुझे तो मेरे
सृजनहार से मिलन चाहिए
ज्ञानी को ज्ञान, वैज्ञानिक को विज्ञान, कलाकार को मिले कला, भक्त
रो रो कहे - मिलन चाहिए
कड़ी से कड़ी बढ़ती जाती मिलन की भी कथा अनूठी श्रृंखला विस्तृत
दर्शन से पूछा मिलन क्या है !
वो बोला- अनंत विस्तार पे भार अथाह आत्मा सहे ,हैं कर्मभोग के योग
बस और ये मिलन क्या है !
भक्त ज्ञानी विज्ञानी कलाकार से पूछा जाना,सोचा के प्रेम क्यूँ वंचित रहे
पूछते है के ये मिलन क्या है
प्रेम बोला- प्यारे खुद भटकता समय के अंचल में अधूरा हूँ , जा मिलूं
प्रीतम से और मिलन क्या है!
© लता २५-११ -२०१७ , शनिवार १३:४२
No comments:
Post a Comment