Saturday 8 April 2017

बेख़ौफ़ इश्क


इश्क का ये दस्तूर है यूँ ही चलता है
आग ओर पानी का खेल मचलता है

लहरे ऊँची उठ, दबाती हैं लावे को
लावा भी दहक पानी भाप करता है

ना ही ये दरिया खुश्क हो सूखता है
न वो दरिया अपना रस्ता बदलता है

न कश्ती खौफजदा तूफानी लहरों से
न सागर कश्ती को मुआफ करता है

न आंधी से डर पर्बत गुफा में छुपते
न वज्र से डर फूल खिलना भूलते है

कुछ देर की दास्ताँ हारा कोई जीता
इश्क का दस्तूर सदियों से चलता है


जीवनमोम संग पिघले गले बाती जले
लिपटसंग जल न डर पतंगा कहता है 

जां-बाज इसे हौसला ए इंसान कहे है 
इबरत ए ख़ुदा पढ़ बंदे,पीर कहता है 

इश्क का दस्तूर है इस जहाँ में यूँ ही
बेख़ौफ़ इश्क का खेल ऐसे चलता है

© lata
08 04 2017

"इश्कबाजी करते करते दिल धतूरा हो गया ,
जान पर जब आ पड़ी तो इश्क पूरा हो गया"
इश्कबाज़ का इश्क कैसा भी भी हो , इससे हो उससे हो यहाँ हो या वहां हो , सीमाओं को तोड़ता तो है ही , और उन सीमाओं का टूटना किसी के भी सामर्थ्य को बता देता है , भले वो सांसारिक हो या असांसारिक , मोहब्बत का नियम तो एक ही है ,कहते है लैला मजनू मिल गए होते, तो इतनी गहराई से मशहूर न होते , नहीं मिले तो उनका इश्क मिल गया , मिलते तो देह मिलती इश्क़ भाप हो जाता। अधूरापन ही इसकी पूर्णता है , सुफिओं संतो और भक्तो की दीवानगी का रहस्य कुछ समझे क्या ? जिन्होंने कभी भी इश्क किया है उनके लिए समझना आसान होगा।

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