Saturday 8 April 2017

नंबर ९ की हठ


नंबर  नौ की बालहठ  शून्य से 

हठ कर, "" से बोला
मुझे भी नंबर है बनना
लगता  हूँ मैं भी तो वैसा
फर्क नहीं उस मे मुझ मे
वो ही स्याही,वो ही गोला 
८,२,३,७,४,६,कुनमुनाये
आपाधापी खेल रेलमपेल
भरे स्थान ख़ाली शून्य बने
नंबर जा बैठे व्योम पे, पर
आदतन लगे हुए कतार में
१-२-३-४-५-६-७-८-९-० 
शून्य बोला १ को १० बना
तुझे मिला तो ९० बन गया
बोलो - क्या बनना या ९ 
सवाल नहीं की एक या नौ
"" तुम्हारे साथ है के नहीं
समझना ९ के लिए जरुरी
कालचक्र के घेरे में करीब
और ही थे, सभी नंबर
अपनी धुरी पे नाचतेकूदते
असंख्य तारे जड़ित चादर
कितना सुंदर तारा-मंडल
अनगिनत उल्काएं नाचती
स्वयंकीअकाशगंग बनाती

© Lata 08 /04/2017 
© लता ०८ - ०४ - २०१७ 

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