पंचतत्व की देह है, अवगुणं की खान
दिया बारा प्रेम का मेरे प्रियतम प्राण
बाती कहे सुलगती हूँ तेरे पिघलने से
मोम कहे; पिघलूँ क्यूंकि तू है जलती
जलती मोम, सुलगती बाती, संग-संग
प्राण-बाती जले मेरी देह-मोम के संग
सतत यज्ञ-कर्म होवे आहुति मेरे प्राण
श्वास वाष्प छन्न से यज्ञाग्नि में जलदान
पलपल जीवनमन्त्र हो मालाजप जान
कर्महोम धूंधूं जले मुक्ता खुदको मान
स्थिरमध्य सुलगे बाती जिजीविषा की
पिघले मोम कँपाये लौ दीपशिखा की
पूजा की थाली सजी, पुष्प संग नैवेद्य
दीप जले नेह का आ रे प्रियतम प्राण
दिया बारा प्रेम का मेरे प्रियतम प्राण
बाती कहे सुलगती हूँ तेरे पिघलने से
मोम कहे; पिघलूँ क्यूंकि तू है जलती
जलती मोम, सुलगती बाती, संग-संग
प्राण-बाती जले मेरी देह-मोम के संग
सतत यज्ञ-कर्म होवे आहुति मेरे प्राण
श्वास वाष्प छन्न से यज्ञाग्नि में जलदान
पलपल जीवनमन्त्र हो मालाजप जान
कर्महोम धूंधूं जले मुक्ता खुदको मान
स्थिरमध्य सुलगे बाती जिजीविषा की
पिघले मोम कँपाये लौ दीपशिखा की
पूजा की थाली सजी, पुष्प संग नैवेद्य
दीप जले नेह का आ रे प्रियतम प्राण
17-04-2017
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