Saturday 18 March 2017

एकाक्षरी धुन



दो अक्षर जाने
स्वागत किये
परिणाम ज्ञान
बहुआयामी विस्फोट
सैकड़ों चिंगारिया
ज्वालामुख से प्रकट हुईं
और होती ही चली गयी ।
दो अक्षर जान के तो
बेचैनियां बढ़ती गयी ,
इससे कहूँ उससे कहूँ
या के खुद से ही कहूँ ,

फिर आधा कदम चले ,
तो ढाई से भेंट हुई
अजीब गणित है न ,
दो से ढाई पे फासला
थोड़ा और कम हुआ
और ऐसा वैसा नहीं
फिर जो आगे चले तो,
न दो और न रहे ढाई
बस "एक" ही बच रहा

राधा ओ कान्हा के बीच
प्रेम-शतरंज का खेल हुआ
थी शर्त मुस्कराती राधे की
जो हारू तो तेरी हो जाऊं
अगर जीतूं तू मेरा हो जाये

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