Friday 13 January 2017

" थोड़ा ठहर जाओ "



दौड़ते-भागते को यही कहना 
काफी है - " थोड़ा ठहर जाओ "
कभी थका हुआ भाव मानेगा 
कभी उसका युवा भाव भगाएगा , 
जहाँ कण कण गति में हो , 
वहाँ ये अनमोल भाव देती- 
वो मां अच्छी है ,
वो गुरु अच्छे है ,
वो मित्र अच्छे है,

वो सुकून अच्छा
वो पल अच्छा

वो घर अच्छा ,
वो प्रिय का साथ अच्छा ,
वो कमरा अच्छा ,
वो बिस्तर अच्छा ,
वो हौले आँखों में उतरती
खुमारी संग नींद अच्छी
उस नशीली खुमारी संग
वो कुर्सी अच्छी ,
वो चाय का कप अच्छा ,
वो चुस्की अच्छी !
वो सुकून अच्छा
वो पल अच्छा 


जहाँ खुले आकाश नीचे 
टिमटिमाते  जुगनुओ संग 
दसों दिशाए सहलाएं 
जहाँ रुपहले रेत के कन 
भीगे , मद्धम लहरो से 
शीतल , तन को छू जाएँ 
जहाँ मखमली हरी घास 
सुगन्धित रंगीन पुष्प 
देह को सजाएँ 
जहाँ  घने बृक्ष की छाया 
और बयार बांसुरी बजाये
वो सुकून अच्छा
वो पल अच्छा

और कौन अच्छा !
ये सुनना के " थोड़ा ठहर जाओ "


© Lata
१३ / ०१ / २०१७ 

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