काफी है - " थोड़ा ठहर जाओ "
कभी थका हुआ भाव मानेगा
कभी उसका युवा भाव भगाएगा ,
जहाँ कण कण गति में हो ,
वहाँ ये अनमोल भाव देती-
वो मां अच्छी है ,
वो गुरु अच्छे है ,
वो मित्र अच्छे है,
वो सुकून अच्छा
वो पल अच्छा
वो घर अच्छा ,
वो प्रिय का साथ अच्छा ,
वो कमरा अच्छा ,
वो बिस्तर अच्छा ,
वो हौले आँखों में उतरती
खुमारी संग नींद अच्छी
उस नशीली खुमारी संग
वो कुर्सी अच्छी ,
वो चाय का कप अच्छा ,
वो चुस्की अच्छी !
वो सुकून अच्छा
वो पल अच्छा
जहाँ खुले आकाश नीचे
टिमटिमाते जुगनुओ संग
दसों दिशाए सहलाएं
जहाँ रुपहले रेत के कन
भीगे , मद्धम लहरो से
शीतल , तन को छू जाएँ
जहाँ मखमली हरी घास
सुगन्धित रंगीन पुष्प
देह को सजाएँ
जहाँ घने बृक्ष की छाया
और बयार बांसुरी बजाये
वो सुकून अच्छा
वो पल अच्छा
और कौन अच्छा !
ये सुनना के " थोड़ा ठहर जाओ "
© Lata
१३ / ०१ / २०१७
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