Wednesday 4 January 2017

क्योंकि मनुष्य है तू।

चूँकि , चुनाव नहीं संभव हर कदम
चुनावरहित स्वीकृति है ,
मार्ग कोई भी सरल सहज रहो
सतर्क रहो , पथिक !
मनुष्य ही कह सकते है 
एक दूसरे से ...
समय की अनिश्चितता से
सशंकित , प्रार्थना से भरा है तू
फिर भी गर्वित है तू
क्योंकि मनुष्य है तू।
अट्टहास कौतुहल साथ - साथ ,
क्योंकि तू सब कुछ है
इस पल में शक्तिमान जीवन
कुछ भी नहीं , समय के चाक पे
चढ़ा हुआ इस पल से अलग तू
उल्कापिंड से टूटा, मृत तारा भी नहीं
नन्हे कण को समेटे अपने अंदर
ऐसी भी गुंजाइश नहीं तुझमे !!
फिर भी गर्वित है तू
क्योंकि मनुष्य है तू।
किन किनारो को तोड़ने में सक्षम
भावना में बहने की योजना
जन्मो के लिए मूरख ,
किन तर्कों के मक्कड़ जाल में
उलझा हुआ है तू ,
क्योंकि मनुष्य है तू।
जरा देख तो , आँखे खोल ले पगले ,
ऐसा भी क्या आलस , खुमारी तोड़ ले
पगले , जो उन्माद में है
उनके खर्राटों को ताक पे रख ,
वो देख ! भोर का तारा , दिखा है तुझे
क्योंकि मनुष्य है तू। !!

Lata Tewari
04-01-2017
1 hr

No comments:

Post a Comment