तरंगे
हाँ !! तरंगे ........!!
नाचती
हुंकार्ती
रंग रंगीली
डोलती
कुहुकती
बांसुरी सी ,
मधुर रागिनी ........!!
गुलाब सी
सुंदर सुरूप
मंजू ललिता
कोमल , खिलती ,
महकती ..............!!
सुदूर से उठती नाद सी
कभी अंतस में रमण-विलास
तो कभी गरजती
उठते समुद्री तूफान सी
बादलों सी काली
घिरती कभी बरसती ;
छुन छुन सी ...........!!
कभी ब्रश से लिपट
उभरती आकृति बन
फैलती कैनवास पे
तो कभी जीवन मंच पे
थिरकती रुनझुन सी
घूंघर बन छम छम करती
कभी बिजली हो तडकती
सात रंग ओढ़े
नीले आसमान पे ...........!!
हाँ !! तरंगे ...
हम आप सी
अदृश्य जीवित
अदृश्य देह स्वामिनी
कुशल वास्तुकार सी
कोरे कागज पे
रेखाएं खेंचती
अनेकों ऊर्जाओं के
योग सहयोग से
मजबूत नींव खोदती
भरती उसे भविष्य की
बहुमंजिली ईमारत के लिए
संयोगो के योग की -
एक एक ईंट से बनाती
विशाल ईमारत
जो कभी हलकी तो
कभी भारी पत्थर सी
अपनी ही नींव पे खड़ी
तरंगों का भवन
लोहे और पत्थर से भरा
सुचारु कार्य
विभाजन के लिए
कमरों के लिए
दीवालें बनाती
और सुदृढ़ नींव
समयकाल में
जर्जर होती
अपनी ही ईमारत
को ढा देती
सु जागृत ,
सु अभिनेत्री
सु नर्तकी
सु कामिनी
सु कलाकार
देव विष्वकर्मा सी
कुशल निर्माण कर्त्री
निद्राधीन सुप्त योगिनी
विष्णु सी मोहिनी
मोह लोभ का
रस पिलाती
अदृश्यदेहधारी ..............!!
हाँ !! तरंगे ...
हम आप सी
जीवन जी जाती
कभी सहज
कभी असहज होती
हम आप से अधिक
आयु अवधि ढोती
संजोए अपने ही कर्म को
बटोरती , समय के चक्र
पे चढ़ी हुई
युगों से
अपने ही
जीवन-पथ पे बढ़ती जाती..!!
हाँ !! तरंगे ........!!
नाचती
हुंकार्ती
रंग रंगीली
डोलती
कुहुकती
बांसुरी सी ,
मधुर रागिनी ........!!
गुलाब सी
सुंदर सुरूप
मंजू ललिता
कोमल , खिलती ,
महकती ..............!!
सुदूर से उठती नाद सी
कभी अंतस में रमण-विलास
तो कभी गरजती
उठते समुद्री तूफान सी
बादलों सी काली
घिरती कभी बरसती ;
छुन छुन सी ...........!!
कभी ब्रश से लिपट
उभरती आकृति बन
फैलती कैनवास पे
तो कभी जीवन मंच पे
थिरकती रुनझुन सी
घूंघर बन छम छम करती
कभी बिजली हो तडकती
सात रंग ओढ़े
नीले आसमान पे ...........!!
हाँ !! तरंगे ...
हम आप सी
अदृश्य जीवित
अदृश्य देह स्वामिनी
कुशल वास्तुकार सी
कोरे कागज पे
रेखाएं खेंचती
अनेकों ऊर्जाओं के
योग सहयोग से
मजबूत नींव खोदती
भरती उसे भविष्य की
बहुमंजिली ईमारत के लिए
संयोगो के योग की -
एक एक ईंट से बनाती
विशाल ईमारत
जो कभी हलकी तो
कभी भारी पत्थर सी
अपनी ही नींव पे खड़ी
तरंगों का भवन
लोहे और पत्थर से भरा
सुचारु कार्य
विभाजन के लिए
कमरों के लिए
दीवालें बनाती
और सुदृढ़ नींव
समयकाल में
जर्जर होती
अपनी ही ईमारत
को ढा देती
सु जागृत ,
सु अभिनेत्री
सु नर्तकी
सु कामिनी
सु कलाकार
देव विष्वकर्मा सी
कुशल निर्माण कर्त्री
निद्राधीन सुप्त योगिनी
विष्णु सी मोहिनी
मोह लोभ का
रस पिलाती
अदृश्यदेहधारी ..............!!
हाँ !! तरंगे ...
हम आप सी
जीवन जी जाती
कभी सहज
कभी असहज होती
हम आप से अधिक
आयु अवधि ढोती
संजोए अपने ही कर्म को
बटोरती , समय के चक्र
पे चढ़ी हुई
युगों से
अपने ही
जीवन-पथ पे बढ़ती जाती..!!
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