Friday, 19 July 2019

छोटे शिवा

छोटे शिवा
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आमंत्रण है इस राह के पथिक का तुमको
इस उपवन में चहुँ सुवास का ही वास है।
ये तो नहीं पता के कब क्या और कितना
बेचैनियाँ दुश्वारियां झंझावात जो जीवन के
तुमसे तुम्हारे अधूरेपन की कहानी कहेंगी
इठलाती बलखाती हरहराती गंग उतरेगी
शिवसम उन्हें बांधने को योगी तो होना है!
समेटना विशालप्रवाह को मस्तकजटा में
सर्व मंगल को उसकी स्निग्ध धार काफी है
चन्द्रकला भी जटा में अटकाना छोटे शिवा
19/07/2019
वो जीवनदायनी गंगा है, भुलशोनथी छोटे शिवा
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देखो वो आकाश से उतर रही है सीधा तुम तक
वो जीवनदायनी गंगा है, भुलशोनथी छोटे शिवा दुग्धधार सी उज्जवल गड़गड़ करती अमृतमयी वो जीवनदायनी गंगा है, भुलशोनथी छोटे शिवा सुखदुख कर्मजाल मेल लिए ,तुम्हे स्नान कराती उसे न देख पाओगे तिनके से अस्तित्व के साथ वो जीवनदायनी गंगा, बाद माँ वत स्नान न करा जटा में आ बैठ जाएगी, भुलशोनथी छोटे शिवा याचना एक धार का करेगी सर्वकल्याण के लिए वो जीवनदायनी गंगा है, भुलशोनथी छोटे शिवा अस्तित्व-बीज को धरा में बो दो यहीं छोटे शिवा वो जीवनदायनी गंगा है, भुलशोनथी छोटे शिवा योगतप से वृक्षसम जब स्थिर सुदृढ़ सक्षम होना वो जीवनदायनी गंगा है, भुलशोनथी छोटे शिवा सुलझाना न विशाल जटाएँ खोलना छोटे शिवा वो जीवनदायनी गंगा है, भुलशोनथी छोटे शिवा
20/07/2019

Wednesday, 10 July 2019

हमेशा देर कर देता हूँ मैं ( ghazal/poetry by Munir Niazi)

हमेशा देर कर देता हूँ मैं / मुनीर नियाज़ी (Muneer Niazi)

1923 - 2006LahorePakistan
Pen Name :'Muneer'
Real Name :Mohammad Muneer khan
Born :09 Apr 1923HoshiarpurIndia
Died :26 Dec 2006
ik aur dariyā sāmnā thā 'munīr' mujh ko
maiñ ek dariyā ke paar utrā to maiñ ne dekhā
Munir Niyazi was a famous poet. He was born at Khanpur, district Hoshiyarpur (India). After the partition of India, he migrated to Pakistan and settled in Montgomery and later in Lahore. In Montgomery, he had started his own publishing house and had also started his weekly journal called Saat Rang. Munir has been associated for long with several literary societies and was admired in both India and Pakistan. His poems had been widely circulated and translated into other languages. He has also written poetry in Punjabi language. Munir wrote numerous songs for films and made his name as the foremost movie songwriter of Pakistan. Some of his publications include Tez hawa aur tanha phool, Mah-e-Munir, Pahli baat hi akhri thi. In recognition of his literary achievement, he was honoured with “The Pride of Performance” by the Government of Pakistan. Munir was also a sportsman, a horse rider, a rifle shooter and a swimmer.




SEE GHAZAL:-

ज़रूरी बात कहनी हो 
कोई वादा निभाना हो 
उसे आवाज़ देनी हो 
उसे वापस बुलाना हो 
हमेशा देर कर देता हूँ मैं

मदद करनी हो उसकी 
यार का धाढ़स बंधाना हो 
बहुत देरी ना रास्तों पर 
किसी से मिलने जाना हो 
हमेशा देर कर देता हूँ मैं 

बदलते मौसमों की सैर में 
दिल को लगाना हो 
किसी को याद रखना हो 
किसी को भूल जाना हो 
हमेशा देर कर देता हूँ मैं 

किसी को मौत से पहले 
किसी ग़म से बचाना हो 
हक़ीक़त और थी कुछ 
उस को जा के ये बताना हो 
हमेशा देर कर देता हूँ मैं 


The Ghazal get popularity due to tuches general

of each and every human behavior; In person, whose realizes 

later with regrets,

 small reason of Ignorance and the time to express get slip.

later;  the precious can goes away.

This story can be any of us , here is knock by precious time, 

be in time for time.

- मुनीर नियाज़ी  साहब 

ने अपनी बात ग़ज़ल में कह तमाम भाव को भी छू 

लिया  और  मशहूर हो गयी उनकी ग़ज़ल अपने भाव के साथ।  

इस देरी से आने वाले भाव से हर पीड़ित जिसका समय के 

साथ कुछ कुछ बह जाता है और नि:सहाय सा मन मसोसता 

सोचता रह जाता है - हमेशा देर कर देता हूँ मैं !!



Monday, 8 July 2019

स्त्री की जिजीविषा

माँ के विकास से सम्बंधित कविता की पंक्तियाँ अपने जीवन के अंतिम वर्षों में मां बहुत शांत हो गई थीं ..पढ़ते समय मेरे मन में कुछ भाव आये , उस स्त्री के सम्बन्ध में , उस स्त्री के बालिका से प्रौढ़ा हुई उम्र से बंधे मनोविकास के सम्बन्ध में , ये विकास के चरण है , संभवतः अनुभवों की चढान है इस चढान  में  अंतिम पायदान  या अंतिम कदम कौन सा होगा  , मुश्किल है कहना , पर अपने प्रोढ़ होते अनुभवों में इस प्रकार का ढलान एक स्त्री की परिपक्वता उम्र के अंतिमचरन की ओर रुखसत जरूर इशारा  है  इसी में  इसी भाव के साथ  कूच  कर जाना , पीछे आते अनेकों के लिए इशारा भी -

नहीं कह सकते के 
अंतिम वर्ष कौन से होते है 
सुलभ बाल्यअठखेली तो थी 
समय पे युवा उन्मांद  भी था 
नारी के स्वाभिमान की स्वामिनी थी 
मात् वात्सल्य का गर्व भी था 
ये पल जो वख्ती भराव ला रहे थे 
स्त्री कर्त्तव्य और प्रेम से लबालब 
स्रोत से निकली नदी की तरह चंचल
आगे खड़े इंतजार में वख्ती कटान थे 
जो जीवन के जल को सूखाने में सक्षम थे 
और इस तरह जल्वत चंचला स्वाभिमानी 
अपने जीवन के अंतिम वर्षों में 
शांत हुई मां थी 
अब वो ही......
वृद्ध हो चली  
समय में पहले सी आंधी सी रफ़्तार नहीं 
वरन धीमा मंथर गति का बहाव है 
लगता है अंतिम स्थति को बढ़ती, अब!
उम्र के बहाव को समझती है  
जानती है  के उसके पास कुछ भी नहीं रुकेगा 
शायद कुछ यूँ ही सोचती हुई... 

(आगे ग्राह्य करें कव्यत्री के भाव )


अपने जीवन के अंतिम वर्षों में 
मां बहुत शांत हो गई थीं ..
कोई कुछ कहता तो चुपचाप सुन लेतीं
न कोई जिरह न विवाद
न ही कोई समझाइश..
उन्होंने अपनी बात रखनी छोड़ दी थी
अपनी बात करनी छोड़ दी थी..
अपने दुखों से अलिप्त हो गईं थीं
मानो अपना अस्तित्व ओझल कर रही हों
अधिकार कर्तव्य सब त्याज रही हों ..
वे घर में ही वैरागी हो गईं थीं
उनका ऐसा निर्लिप्त हो जाना
कभी कभी भयभीत करता था
अपनी सत्ता त्याग रहीं थीं
अपने दायित्व छोड़ रही थीं
दुख सुख आस निराश सब विगलित कर रही थीं
मन विसर्जित कर रही थीं
और कुछ ही वर्षों में उन्होंने तन भी विसर्जित कर दिया
और तभी मैंने जाना
कि स्त्री का क्रोध रोष
अधिकार दायित्व
प्रेम वात्सल्य
यही उसकी जिजीविषा हैं
इन्हें तज कर वो पहले मन से विमुख होती है
फिर आहिस्ते आहिस्ते अपनी परछाईं से विलग होती है ...


(NidhiSaxena 08/07/19: 12:17am)


Monday, 4 March 2019

A North Indian Rural Marriage Folk -3 देवी ढोलक गीत

१- कैसे का दर्शन पाऊं री 

कैसे का दर्शन पाऊं री  तोरी  संकरी दुवरिया
कैसे का दर्शन पाऊं री  तोरी  संकरी दुवरिया

मईया के दुवारे इक बधिर पुकारे ऐहिका श्रवणशक्ति देवो री
टोरी संकरी दुवरिया

मईया के दुवारे इक बँझिन पुकारे  ऐहिका भी लालन देवो री
तोरी  संकरी दुवरिया

मईया के दुवारे एक कोढीया पुकारे ऐहिका सुवर्णदेह देवो री
तोरी  संकरी दुवरिया

मईया के दुवारे इक बालक पुकारे  ऐहिका बुद्धि दान  देवो री
तोरी  संकरी दुवरिया

मईया के दुवारे इक निर्धन पुकारे, ऐहिका भी  रतनधन  देवो री
तोरी  संकरी दुवरिया

मईया के दुवारे इक अंधरा पुकारे ऐहिका भी दो नैना $ देवो री
तोरी  संकरी दुवरिया


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२- मईया तोरे दर्शन 

मईया तोरे दर्शन अइबे जरूर  देवी तोरे दर्शन अइबे जरूर
चढ़ावा फूल माला लाइबे जरूर,  मईया तोरे दरसन अइबे जरुर

हमहू अइबे बालकवा  को लइबे
झोली भर बुद्धि माँगिबे जरूर  मईया तोरे दरसन अइबे जरुर

हमहू अइबे  निर्धनवा को लइबे
झोळीभर धन मँगबे जरूर ,मईया तोरे दरसन अइबे जरुर


हमहू अइबे बांझन को भी लइबे
झोली पसार लल्ला मंगिबे जरूर मईया तोरे दरसन अइबे जरुर

हमहू अइबे रोगी को भी लइबे
 सूंदर निरोगी काया मँगबे जरूर ,मईया तोरे दरसन अइबे जरुर

हमहू अइबे संग  देवान्ध  को भी लाइबे इसको भी दो नैना देवो री
तोरी  संकरी दुवरिया

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 ३ - आजा तुझको  रिझाऊं 


सिंदूर महावर  लगयी  के  आजा तुझको सजाऊं टिका नथनी  तोहे पहनई के
आजा तुझको  रिझाऊं

 स्न्नान कराऊँ ,उपटन लगाऊं , सुगंधचन्दन का लेप लगयी के
आजा तुझको रिझाऊं

दीपक जलाऊ होम कराऊं, लाले फूलन की माला बनई के
आजा तुझको रिझाऊ

ढोलक बजाऊं , मंजीरा बजाऊं , करताल से  थाप लगाई के
आजा तुझको रिझाऊ

मैं जो नाचू संग सखियाँ भी नाचें टोला मोहल्ला सहर नचईं के 
आजा तुझको रिझाऊं

मेवामिश्री चढ़ाऊँ थरिया सजाऊं, छायादार छप्पर छवाईं  के
आजा तुझको रिझाऊ

04-03-2019
रचनाकार : लता  तिवारी 

Sunday, 10 February 2019

काला

सोचती हूँ काला सातरंग की ही विधा है उसका ये छोर सफ़ेद वो काला, बात है! समझ आया जब स्वीपर ने नाली खोली बहुत बदबू थी, कचरा भी काला-काला सफाई में निकलते काला बदबूदार ढेर गटर की सफाई तो हम सभी जानते हैं जिस्म का लाल-रक्त सूख काला-काला कालीदेह शिवभस्म से लिपट स्लेटी हुई पर जिनके रक्त के कण लाल नहीं, वो! क्या कहूं ! ये बात भी तो बस काले की धरती से बंध बैठे मूरख उनकी कहानी बंधे इशारे न देखे, वो बंदगी को मानता शातिर हैं जो श्वेत को कसके पकड़ बैठा काला संग लिए गोरी चमड़ी में छुप बैठा ऐसे कस के पकडे श्वेत श्यामा-गुण गाये नासमझ सयाने को बोलो कौन समझाए यूँ तो ! सातों रंग सफ़ेद में भी भरे हुए हैं काले पे दिखे नहीं पर श्वेत में चमकते हैं यूँ तो नहीं कहते- कान्हा का रंग काला गहन मन काला तब ही वर्षा-मेघ काला ऐसे घोर काले घन तबाही देते जीवन थे ऐसे सृजन को विष्णु कहा भगवत कहा योग के घोर ज्ञान के जन्मे पल काले में ज्ञान दर्शन महा ज्ञानी ने काले में किया गहरी रात में मुआ गहरा आस्मां काला खाटू श्याम काला और शिव् ॐ काला काले आस्मा पे चाँदसितारे देख समझ काले खाटू की देह में हीरे चमका दिए और शिव ॐ तो आकाशगंगा को लिए और तो और मन पे भी सफ़ेद रंग सजा दिन का रवि श्वेत प्रचंड जब चमका तो घोर काला शून्याकाश नीलानीला हुआ लो इत्ते में समझ बोली-रंगो में भी भेद! सातों रंग उसके तो है किसेअलग करें बुद्धि बोली-भेद नहीं, इसे विवेक कहो काले की भूमि निर्मल-अक्ष;जानते रहो रात की स्याही में सैकड़ों तरंगे काली दिन के कागज पे इक दाग भी चमके छिपे काले पे सात रंग श्वेतपन्ने पे दिखे छिपना जिस्पे उन्का नामुमकिन हुआ

Thursday, 24 January 2019

मां


प्रेम और श्रद्धा पूर्वक जीवनदायी मां और मातृ-भाव को समर्पित
(release on 28 January 2019 onwards)




नब्बे वर्ष पूरे कर सकी थी 
बस नब्बे की थी, मेरी मां 
कृषकाय क्षीर्ण जर्जर देह 
अपनी मां को सालों पहले 
खोने के बाद वृद्ध हुई थी 
और मैं पछत्तर की युवती 
एक मेरी भी बेटी, युवा है 
शायद मेरे कारन युवा है 

मैं माँ के साथ जगमग थी 
बस कंधे पे हाथ रख देती 
पूछती स्नेह भर- कैसी हो!
और मैं भूल जाती पीड़ायें 
आखिर ऐसा क्या जादू था 
प्रेमबोल चेहरे का लोशन
झुर्रियां पड़ने ही नहीं देते 
घने मेघ से केश दमकते 
मैं सतत मुस्कराती रहती 
मेरी आवाज में चहकन-
और मां गुनगुनाती रहती
मानो नदी बेसाख्ता बहे.. 
पर आज मेरी मां नहीं है 
तो झुर्रियां चेहरे पे बढ़ गयी 
आवाज मेरी मुरझा गयी 
और बाल अनयस सफ़ेद 
लहरों सी क्रीड़ा करती-
थोड़ी खारी और संजीदा
आज गहरा समंदर हुई मैं 
मानो मुझे युवा रखने की
मां  के पास कोई बूटी थी !

कुछ सोच मेरी बेटी बोली 
नानी...आपके लिए मलाई-
बालों में मालिश का तेल थी 
आप तितली सी सुन्दर हलकी
नानी आपके लिए सुंदर फूल 
मां ! मेरे गालो की आप मलाई
और बालो के लिए मालिश तेल 
मेरी छुट्टी तीरथ मिठाई आप हो 
फिर जरा धीमे से प्रौढ़ा हो बोली -
हर मां के पास अक्षत यौवन देती 
जादू की बूटी एक मां होनी चाहिए 
मां! आपकी सेहत का वो राज थी 
मेरी भी युवावस्था का राज आप हो



Monday, 21 January 2019

शिवोहम शिवोहम शिवोहम

शिवोहम शिवोहम शिवोहम
शिवोहम शिवोहम शिवोहम

i am the suprem bliss , i am the suprem bliss,  i am the suprem bliss 
i am the suprem bliss , i am the suprem bliss , i am the suprem bliss 

शान्ताकारस्वरूपा शिवोहम शिवोहम
प्रेमरूपस्वरूपा शिवोहम शिवोहम

The shape of peace , i am the suprem bliss, i am the suprem bliss  
The shape of love , i am the suprem bliss , i am the suprem bliss 

पवित्रोहं पवित्रोहं पवित्रोहं पवित्रोहं
शिवोहम शिवोहम शिवोहम
i am pure , i am pure , i am pure , i am pure
i am the suprem bliss , i am the suprem bliss , i am the suprem bliss 

परमंशक्तिसंयुक्ता शिवोहम शिवोहम
ज्ञानरूपस्वरूपा शिवोहम शिवोहम
Equipped with super power i am the suprem bliss i am the suprem bliss 
the shape of ultimate wisom i am the suprem bliss i am the suprem bliss 

पवित्रोहं आनंदोहं पवित्रोहंआनंदोहं
शिवोहम शिवोहम शिवोहम
i am pure i am peace i am pure i am peace
i am the suprem bliss i am the supreme bliss i am the supreme bliss 

अतीन्द्रयसुखानुभुक्ता शिवोहम शिवोहम
आनंदात्मस्वरूपा शिवोहम शिवोहम
Experienced of Para senses i am the suprem bliss i am the supreme bliss 
I am Peaceful Soul i am the supreme bliss i am the supreme bliss 

आनंदोहं आनंदोहं आनंदोहं आनंदोहं
शिवोहम शिवोहम शिवोहम
I am Peace I am Peace I am Peace I am peace 
i am the suprem bliss i am the suprem bliss i am the suprem bliss 


17-01-2019
Lata