Tuesday, 6 March 2018

भूः


सौंदर्यलहरी अनुपम छवि निराली है
सुगंध स्निग्ध प्राण तरल गरलधारी हैं
दूर से लावण्यि नर्तकी थिरकती ज्यूँ
जाना तुझे छद्मी मोहिनी अतिक्रूर है

मातृरुपा, गर्भधारिणी, प्राणदायनी है
योगिनी मायारूपणी शक्तिस्वामिनी
प्रेमबीज रोपती सींचती रक्तओज से
प्राणरस फल बीज पुनरावृत्ती पूर्ण है


जीवन गीत पे थिरकती अभिसारणी
ताल देती लय पे अभिनेत्री भरपूर है
भाव देती सुगंधसम, देह पुष्परूप है
प्राण देव वृक्ष जड़ें बोध प्रिय भोज है

Lata 
06/03/2018
18:44 pm

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