Wednesday 21 March 2018

कल्ल, तेरा रब तुझको माफ़ करेगा...





घर आये, तो पायदान पे पैर रगड़ के
बाहर की धूल को बाहर ही रख दिए
महकते बेला के गमले में जल दे कर
गले में ठंडा जल घूँट भर उतार लिए
ग़िलास ! उसकी जगह पे पलट दिये
बेतरतीब सामां, सलीके से रख दिए

गर्म चाय ले के इज़ीचेयर पे बैठ गए
जहाँ बैठे थे थोड़ा हाथ से झाड़ लिए
जूठी प्लेट संग चाय पीकर कप को
नाबदान में, जळ किञ्च के रख दिए
हम खड्डेकीचड़ से बच निकल लिए
राह की तूतू-मैंमैं तो चुप टहल लिए

ख्याल महज के, तबियत दुरुस्त रहे
फल सब्जी भी खरीदी देख-भाल के
पकाई करीने से, परोसी भी प्यार से
प्रेम से खा पीके हाथों को धो पोंछके
बिस्तर पहले से हीआदतन साफ़ था
ढीले लिबास में बैठ पैर को झाड़ के

प्रभु को नमन आज का आभार देके
ख़ुशी से, रोज के जैसे सोने चले गए
दस्तावेज गुम हो गये तब से मौज है
जो है सो है ही जो नहीं है वो नहीं है
सुंनना, ये किसी फ़क़ीर की दुआ है-
बस आज सबको माफ़ कर सुतजा
कल्ल,तेरा रब तुझको माफ़ करेगा...
© LATA
21/03/1018
10:30PM

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