Monday, 26 March 2018

स्त्री-पुरु







स्त्री; नाम पर्याय है बंधन का 
स्त्री, स्वयं के लिए भी बंध है 
आकर्षण भाव देह बंध है यहाँ पुरु अचेतन स्त्री निःसहय है


पुरु न बंधता न बांधता, स्त्री!
स्वतंत्रता उस्के मूलगुण में है 
चूंके मामला प्रकर्ति पे रुका, दो सुजान चेतन बेबस हुए हैं


कुंडली मारे जो इक्छाओं पे 
अड़चन बीजरूप वहीँ बैठी 
पुरुष अंसख्यगामी संभव है स्त्री धुरी का दूसरा पर्याय है


पुरुष बेहतर कहूं के उलझी-
मकड़ी अपने जाल में फंसी
भटक चाहे कितने जाल बुने नवजाल नवाग्रह बंधक हुआ


इक स्त्री देह इक पुरुष देह 
स्त्री-ह्रदय इक पुरुषह्रदय है 
इक प्रेम में बंध के मुक्त हुई इक प्रेमबंधमुक्त ही मुक्त है


पूर्णस्त्रीसंग्राम स्त्री धुरी में है 
पुरु का जग्रतपुरु विपरीत है
यशो कैसे रोक सकेगी उसे जो सम्मोहनचक्र से पार हुआ


ये माया चक्र जो भेद सका 
वो पार हुआ माया जगत से 
पर आकर्षण मोहनी बने है, सोचने ही कहाँ देते है तुझे?


भावप्रेम मोहकर्म बंध ही है 
सं+बंध गृहबंध केंद्र सबका 
कर्म कर्त्तव्य भोग जान मान नवज्ञानी एकबंध में तुष्ट हुआ


योग नहीं, सन्यास नहीं अब 
राग न कोई, द्वेष ही है अब 
इस जन्म में उत्तमज्ञानी पुरु मक्कड़जाल से ही मुक्त हुआ


© Lata-27/03/2018-08:05am




Note: बात सही या गलत नहीं , वो नैतिकता है , क्या होना चाहिए ये सामाजिकता है पर नैसर्गिक धारा अपने गुणों को लिए संग बहती रहती है , ये प्राकतिक सामंजस्य है , जो कहता है नैतिकता और सामाजिकता के बीच मेरा अस्तित्व गहरा है , मैं मूल गुणधर्म हूँ। 

अपनी आज की दृष्टि से और आज की समझ से परखेंगे तो अलग ही दृश्य आएगा  जो अस्पष्ट और धुंधला भी है।  कुछ भी प्रकर्ति में समझना और जानना तो जरुरी है  अपनी दृष्टि का विकास। 

जगत में देह के 
बंटवारे के साथ ही एक पुरुष एक स्त्री में भाव में भी बंटा हुआ हूँ। ये कहता है मैं सभी सम्बन्ध से ऊपर हूँ क्यूंकि मैं मौलिक हूँ , किन्तु मैं मौलिक हूँ शुद्ध हूँ इसलिए सर्वव्यापी हूँ सभी देह में भौतिक देह से अलग मेरा वर्चस्व है , मेरा प्रभाव है। 

अनुपात में ; मानव के व्यव्हार में प्रकट हूँ , प्राकट्य में देह से न मैं स्त्री हूँ न पुरुष, सिर्फ स्त्री या पुरुष भाव हूँ। इसलिए देह से परे हूँ। फिर भी देहबन्ध हूँ।

बस अंतर् इतना ही है बन्धमुक्त-मुक्त पुरुष-भाव है जो प्रकर्ति से देह से इसका कोई सम्बन्ध नहीं और बन्धयुक्त-मुक्त भाव स्त्री का। अलग अलग देह में अलग अलग तरीके से प्रकट।

ध्यान देने वाली बात है,  की सम्बन्ध हमारे है , नैतिकता हमारी है , सामाजिकता हमारी है , और कॉकटेल  भी हमारी ही  बनायीं है , इसलिए कुछ नियम हरेक के लिए है ही।  यहाँ सम्बन्ध कोई भी , सामाजिकता कोई भी हो कहीं की हो ( विश्व या ब्रह्माण्ड , चर या अचर ), जो बने बनाये नियम से मुक्त है वो है एपुरुष भाव और एक स्त्री भाव , अब जो जानते है वो सहज आत्मसात करते है , वर्ना संघर्ष करते है। 
इसलिए किसी भी सम्बन्ध में पुरुष भाव स्वतंत्रता ही चाहता है और स्त्री भाव बंधन में संतुष्ट । ( किसी भी देह का स्वामी कोई भी हो सकता है ) मजे की बात ये इनमे भी अनुपात है अब प्रकृति एक जैसी दिखे पर है नहीं।

Saturday, 24 March 2018

Listen, Dear Emmy !



Golden Door

Listen, Dear...

Feeling exhausted! Oh!
Find dead relation inside
Unable to emerge into
A good friend or loved one
Whatever reason may
Don't lose patience
Just stop and wait for
The door is opening
Trust ! this is just for you
Don't look back
Where is dark behind
And all closed door
Agreed with you
You've got a strong rope of attachment
Don't lose it, treasure absolutely yours
Look the shine of new gate
Enter the gate and find
New Ornaments
New Dress
New Air
New Garden
And All new Relations
Those ready to welcome you
Its Reality of this moment, accept it
Don't tag yourself in past or future hopes
Leave past, live in today, future is your's
Keep loose, probably keep an open fist
Don't tag even in the present
Moments are like a river, are in flow
They are not bound even with time !!
Trust !! you will be the happiest person



with love and prayers
💖💗💝💕
poetry penned 24/13/2018
at 19:39pm © Lata

Note : everyone knows poets are very sensitive and in poets, few cannot control wisely over self apart of strong expressions .. on a poetry side I was reading a poem by someone, and thought comes .. may anyone like 

Not Idea which thought serve to whom...

Wednesday, 21 March 2018

कल्ल, तेरा रब तुझको माफ़ करेगा...





घर आये, तो पायदान पे पैर रगड़ के
बाहर की धूल को बाहर ही रख दिए
महकते बेला के गमले में जल दे कर
गले में ठंडा जल घूँट भर उतार लिए
ग़िलास ! उसकी जगह पे पलट दिये
बेतरतीब सामां, सलीके से रख दिए

गर्म चाय ले के इज़ीचेयर पे बैठ गए
जहाँ बैठे थे थोड़ा हाथ से झाड़ लिए
जूठी प्लेट संग चाय पीकर कप को
नाबदान में, जळ किञ्च के रख दिए
हम खड्डेकीचड़ से बच निकल लिए
राह की तूतू-मैंमैं तो चुप टहल लिए

ख्याल महज के, तबियत दुरुस्त रहे
फल सब्जी भी खरीदी देख-भाल के
पकाई करीने से, परोसी भी प्यार से
प्रेम से खा पीके हाथों को धो पोंछके
बिस्तर पहले से हीआदतन साफ़ था
ढीले लिबास में बैठ पैर को झाड़ के

प्रभु को नमन आज का आभार देके
ख़ुशी से, रोज के जैसे सोने चले गए
दस्तावेज गुम हो गये तब से मौज है
जो है सो है ही जो नहीं है वो नहीं है
सुंनना, ये किसी फ़क़ीर की दुआ है-
बस आज सबको माफ़ कर सुतजा
कल्ल,तेरा रब तुझको माफ़ करेगा...
© LATA
21/03/1018
10:30PM

Tuesday, 6 March 2018

भूः


सौंदर्यलहरी अनुपम छवि निराली है
सुगंध स्निग्ध प्राण तरल गरलधारी हैं
दूर से लावण्यि नर्तकी थिरकती ज्यूँ
जाना तुझे छद्मी मोहिनी अतिक्रूर है

मातृरुपा, गर्भधारिणी, प्राणदायनी है
योगिनी मायारूपणी शक्तिस्वामिनी
प्रेमबीज रोपती सींचती रक्तओज से
प्राणरस फल बीज पुनरावृत्ती पूर्ण है


जीवन गीत पे थिरकती अभिसारणी
ताल देती लय पे अभिनेत्री भरपूर है
भाव देती सुगंधसम, देह पुष्परूप है
प्राण देव वृक्ष जड़ें बोध प्रिय भोज है

Lata 
06/03/2018
18:44 pm

Sunday, 4 March 2018

रे चेतन !



दिल तो सरोवर है,सच में!
भरना ही भरना जानता है
कभी पंकपुष्प से भर उठे
कभी दवानल जल उठे है


रे चेतन! तनिक ध्यान धर
मानसहंस इसमें तिरता है
मोती मोती ये चुग पाता है
व्यर्थ इसे न कुछ पचता है

© lata, 03/03/2018, 07:57am
Black Swan/White Swan - nfs, original painting by artist Johanna ...

चले आओ




अंजानी राह के जलते दीप ये ही कहते है
इक इक कदम डालते आओ, चले आओ

स्याह रात में राह के दमकते हीरे कहते है
न सोचो विचारो मुझे ही बीनते, चले आओ

टिमटिमाती उम्मीदों की रौशनी रौशन रहे
साँसों का उत्सव मे, हँसते-गाते चले आओ

©lata 
2/03/2018
10:21am

पर्व मुझमें बस गए



नाचते शोर करते, उड़ाते रंग,संवर दीपमाला जलाते 
सभी त्योहारों को लड़कपन में जो रंग रौशनी दी थी
Dancing Noisy flying colours, dressed ignite candles
All those Festivals serves colours n light In childhood

सारे एक एक करके रंगरौशनी मुझे वापिस कर गए 
तबसे ये पर्व बाहर नहीं मिलते जबसे मुझमें बस गए
Together one by one return back to me colours n light
From than these festivals not seen out, all dwell in me 

💖

वो खेलमेल वो संगीसाथी ढूंढे से न मिले हैरान न हो 
जीते मुझमे दिखते थे, दरसल उधार मुझी से लेते थे 
Those play/meetings, those friends not find, don't get amazed
All appeared in life with me, actually, they took debt from me 

उस वख्त लिया कर्ज जिनने भी, सभी अदा कर गए 
तबसे वे बाहर नहीं मिलते जबसे मुझमे आ बस गए
That time all those taken debt, all paid fully later,As result.
All those settles reside in me, if not find in the outer world

💝

वो कहने की, बोलने की कोशिश, हौसलों की जुगत 

प्रदर्शनयुक्त श्रम की तैयारी होती आशाओं पे आशा
Those efforts to say, made an effort of talks, an effort to courage
The labour to exhibitions and preparations, hope-list upon hopes

इनके सँग-सँग चलता संज्ञान मौन श्रोता कर्ता भी था 
उसने कहा - अन्यत्र नहीं वे, सब तुझी में आ बस गए
A wisdom walk-around silently was a listener motivator too 
He said- those never go anywhere, all dwell inside you only.

💝

पहचान हुई तब खुद से  जब मुझसे मेरी मुलाकात हुई 
नृत्य थिरकता, था संगीत उभरता, उत्सव भी होते दिखे 
Got Introduction yourself, the day I meet to myself 
Tap dance, emerging rhythmic music, seen festivals

जलती दीप-लड़ी शुद्ध तेल प्राणित, सात रंग उड़ते मिले 
उत्सवयुक्त आनंद-पल, खुशियाँ बन मुझमे आ बस गए  
Candle in the pure life-oil; Ignited, 7 colour flew inside
Festive joyous moments being jollify resides inside me 




© Lata 
04 / 03 / 2018 
10:40 am

note: pl excuse in translation mistake if any!