Wednesday 23 March 2016

मायावी वख्त


वख्त से कभी न बांधना 
मिटती-बनती रेखाओं को 
उभरती मायावी तस्वीरें है
ऐसी...वैसी...कैसी...भी हो
आखिर वख्त बहता बीत जाता है …
.
सरका अपाहिज बन के
कभी रेंगता वृद्ध सदृश
कभी दौड़ता बालक सा
कभी नैतिक सारथी सा
आखिर वख्त बहता बीत जाता है …
.
कभी कठिन कभी सरल
मुस्कान तो कभी जलज
कभी खिलखिलाता हुआ
औ कभी नैनों में बूँद बन
आखिर वख्त बहता बीत जाता है …
.
कभी नदी हो कभी समंदर
कभी पर्वत हो कभी घाटी
रेगिस्तान में फैले रेत्कन
कभी सुगन्धित फूलों सा
आखिर वख्त बहता बीत जाता है …
.
आगाज कभी अंजाम कभी
कभी धूल फँकाता राहों की
बेशकीमती हीरे सा गिरता
स्वातिबूँद सा दीनझोली में !
आखिर वख्त बहता बीत जाता है ...

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