Thursday, 17 March 2016

मनपाखी



बादलों के इसपार ही नहीं, उसपार भी साफ़ दिखता है 
न जाने क्यूँ, मुझे अपनी ही उड़ानों का असर मिलता है !



स्वप्न तुल्य जीवन सम्पदा, अभिसार भाव स्वप्नवत
जो जैसा भी है वैसा ही नैन का अभिराम उसे मिलता है !



न धुंध का अँधेरा है, न रंगो की बरसात से गीला मन है
अब तो नील तू ही इस पार से उस पार तलक मिलता है !



लौ ह्रदयदीप से अंगड़ाई ले जो तू निकली बाहर इकबार
रौशनी से रौशन हरसू सुख़नवर मुस्कराता तू मिलता है !



Om Pranam

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