Monday, 8 July 2019

स्त्री की जिजीविषा

माँ के विकास से सम्बंधित कविता की पंक्तियाँ अपने जीवन के अंतिम वर्षों में मां बहुत शांत हो गई थीं ..पढ़ते समय मेरे मन में कुछ भाव आये , उस स्त्री के सम्बन्ध में , उस स्त्री के बालिका से प्रौढ़ा हुई उम्र से बंधे मनोविकास के सम्बन्ध में , ये विकास के चरण है , संभवतः अनुभवों की चढान है इस चढान  में  अंतिम पायदान  या अंतिम कदम कौन सा होगा  , मुश्किल है कहना , पर अपने प्रोढ़ होते अनुभवों में इस प्रकार का ढलान एक स्त्री की परिपक्वता उम्र के अंतिमचरन की ओर रुखसत जरूर इशारा  है  इसी में  इसी भाव के साथ  कूच  कर जाना , पीछे आते अनेकों के लिए इशारा भी -

नहीं कह सकते के 
अंतिम वर्ष कौन से होते है 
सुलभ बाल्यअठखेली तो थी 
समय पे युवा उन्मांद  भी था 
नारी के स्वाभिमान की स्वामिनी थी 
मात् वात्सल्य का गर्व भी था 
ये पल जो वख्ती भराव ला रहे थे 
स्त्री कर्त्तव्य और प्रेम से लबालब 
स्रोत से निकली नदी की तरह चंचल
आगे खड़े इंतजार में वख्ती कटान थे 
जो जीवन के जल को सूखाने में सक्षम थे 
और इस तरह जल्वत चंचला स्वाभिमानी 
अपने जीवन के अंतिम वर्षों में 
शांत हुई मां थी 
अब वो ही......
वृद्ध हो चली  
समय में पहले सी आंधी सी रफ़्तार नहीं 
वरन धीमा मंथर गति का बहाव है 
लगता है अंतिम स्थति को बढ़ती, अब!
उम्र के बहाव को समझती है  
जानती है  के उसके पास कुछ भी नहीं रुकेगा 
शायद कुछ यूँ ही सोचती हुई... 

(आगे ग्राह्य करें कव्यत्री के भाव )


अपने जीवन के अंतिम वर्षों में 
मां बहुत शांत हो गई थीं ..
कोई कुछ कहता तो चुपचाप सुन लेतीं
न कोई जिरह न विवाद
न ही कोई समझाइश..
उन्होंने अपनी बात रखनी छोड़ दी थी
अपनी बात करनी छोड़ दी थी..
अपने दुखों से अलिप्त हो गईं थीं
मानो अपना अस्तित्व ओझल कर रही हों
अधिकार कर्तव्य सब त्याज रही हों ..
वे घर में ही वैरागी हो गईं थीं
उनका ऐसा निर्लिप्त हो जाना
कभी कभी भयभीत करता था
अपनी सत्ता त्याग रहीं थीं
अपने दायित्व छोड़ रही थीं
दुख सुख आस निराश सब विगलित कर रही थीं
मन विसर्जित कर रही थीं
और कुछ ही वर्षों में उन्होंने तन भी विसर्जित कर दिया
और तभी मैंने जाना
कि स्त्री का क्रोध रोष
अधिकार दायित्व
प्रेम वात्सल्य
यही उसकी जिजीविषा हैं
इन्हें तज कर वो पहले मन से विमुख होती है
फिर आहिस्ते आहिस्ते अपनी परछाईं से विलग होती है ...


(NidhiSaxena 08/07/19: 12:17am)


Monday, 4 March 2019

A North Indian Rural Marriage Folk -3 देवी ढोलक गीत

१- कैसे का दर्शन पाऊं री 

कैसे का दर्शन पाऊं री  तोरी  संकरी दुवरिया
कैसे का दर्शन पाऊं री  तोरी  संकरी दुवरिया

मईया के दुवारे इक बधिर पुकारे ऐहिका श्रवणशक्ति देवो री
टोरी संकरी दुवरिया

मईया के दुवारे इक बँझिन पुकारे  ऐहिका भी लालन देवो री
तोरी  संकरी दुवरिया

मईया के दुवारे एक कोढीया पुकारे ऐहिका सुवर्णदेह देवो री
तोरी  संकरी दुवरिया

मईया के दुवारे इक बालक पुकारे  ऐहिका बुद्धि दान  देवो री
तोरी  संकरी दुवरिया

मईया के दुवारे इक निर्धन पुकारे, ऐहिका भी  रतनधन  देवो री
तोरी  संकरी दुवरिया

मईया के दुवारे इक अंधरा पुकारे ऐहिका भी दो नैना $ देवो री
तोरी  संकरी दुवरिया


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२- मईया तोरे दर्शन 

मईया तोरे दर्शन अइबे जरूर  देवी तोरे दर्शन अइबे जरूर
चढ़ावा फूल माला लाइबे जरूर,  मईया तोरे दरसन अइबे जरुर

हमहू अइबे बालकवा  को लइबे
झोली भर बुद्धि माँगिबे जरूर  मईया तोरे दरसन अइबे जरुर

हमहू अइबे  निर्धनवा को लइबे
झोळीभर धन मँगबे जरूर ,मईया तोरे दरसन अइबे जरुर


हमहू अइबे बांझन को भी लइबे
झोली पसार लल्ला मंगिबे जरूर मईया तोरे दरसन अइबे जरुर

हमहू अइबे रोगी को भी लइबे
 सूंदर निरोगी काया मँगबे जरूर ,मईया तोरे दरसन अइबे जरुर

हमहू अइबे संग  देवान्ध  को भी लाइबे इसको भी दो नैना देवो री
तोरी  संकरी दुवरिया

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 ३ - आजा तुझको  रिझाऊं 


सिंदूर महावर  लगयी  के  आजा तुझको सजाऊं टिका नथनी  तोहे पहनई के
आजा तुझको  रिझाऊं

 स्न्नान कराऊँ ,उपटन लगाऊं , सुगंधचन्दन का लेप लगयी के
आजा तुझको रिझाऊं

दीपक जलाऊ होम कराऊं, लाले फूलन की माला बनई के
आजा तुझको रिझाऊ

ढोलक बजाऊं , मंजीरा बजाऊं , करताल से  थाप लगाई के
आजा तुझको रिझाऊ

मैं जो नाचू संग सखियाँ भी नाचें टोला मोहल्ला सहर नचईं के 
आजा तुझको रिझाऊं

मेवामिश्री चढ़ाऊँ थरिया सजाऊं, छायादार छप्पर छवाईं  के
आजा तुझको रिझाऊ

04-03-2019
रचनाकार : लता  तिवारी 

Sunday, 10 February 2019

काला

सोचती हूँ काला सातरंग की ही विधा है उसका ये छोर सफ़ेद वो काला, बात है! समझ आया जब स्वीपर ने नाली खोली बहुत बदबू थी, कचरा भी काला-काला सफाई में निकलते काला बदबूदार ढेर गटर की सफाई तो हम सभी जानते हैं जिस्म का लाल-रक्त सूख काला-काला कालीदेह शिवभस्म से लिपट स्लेटी हुई पर जिनके रक्त के कण लाल नहीं, वो! क्या कहूं ! ये बात भी तो बस काले की धरती से बंध बैठे मूरख उनकी कहानी बंधे इशारे न देखे, वो बंदगी को मानता शातिर हैं जो श्वेत को कसके पकड़ बैठा काला संग लिए गोरी चमड़ी में छुप बैठा ऐसे कस के पकडे श्वेत श्यामा-गुण गाये नासमझ सयाने को बोलो कौन समझाए यूँ तो ! सातों रंग सफ़ेद में भी भरे हुए हैं काले पे दिखे नहीं पर श्वेत में चमकते हैं यूँ तो नहीं कहते- कान्हा का रंग काला गहन मन काला तब ही वर्षा-मेघ काला ऐसे घोर काले घन तबाही देते जीवन थे ऐसे सृजन को विष्णु कहा भगवत कहा योग के घोर ज्ञान के जन्मे पल काले में ज्ञान दर्शन महा ज्ञानी ने काले में किया गहरी रात में मुआ गहरा आस्मां काला खाटू श्याम काला और शिव् ॐ काला काले आस्मा पे चाँदसितारे देख समझ काले खाटू की देह में हीरे चमका दिए और शिव ॐ तो आकाशगंगा को लिए और तो और मन पे भी सफ़ेद रंग सजा दिन का रवि श्वेत प्रचंड जब चमका तो घोर काला शून्याकाश नीलानीला हुआ लो इत्ते में समझ बोली-रंगो में भी भेद! सातों रंग उसके तो है किसेअलग करें बुद्धि बोली-भेद नहीं, इसे विवेक कहो काले की भूमि निर्मल-अक्ष;जानते रहो रात की स्याही में सैकड़ों तरंगे काली दिन के कागज पे इक दाग भी चमके छिपे काले पे सात रंग श्वेतपन्ने पे दिखे छिपना जिस्पे उन्का नामुमकिन हुआ

Thursday, 24 January 2019

मां


प्रेम और श्रद्धा पूर्वक जीवनदायी मां और मातृ-भाव को समर्पित
(release on 28 January 2019 onwards)




नब्बे वर्ष पूरे कर सकी थी 
बस नब्बे की थी, मेरी मां 
कृषकाय क्षीर्ण जर्जर देह 
अपनी मां को सालों पहले 
खोने के बाद वृद्ध हुई थी 
और मैं पछत्तर की युवती 
एक मेरी भी बेटी, युवा है 
शायद मेरे कारन युवा है 

मैं माँ के साथ जगमग थी 
बस कंधे पे हाथ रख देती 
पूछती स्नेह भर- कैसी हो!
और मैं भूल जाती पीड़ायें 
आखिर ऐसा क्या जादू था 
प्रेमबोल चेहरे का लोशन
झुर्रियां पड़ने ही नहीं देते 
घने मेघ से केश दमकते 
मैं सतत मुस्कराती रहती 
मेरी आवाज में चहकन-
और मां गुनगुनाती रहती
मानो नदी बेसाख्ता बहे.. 
पर आज मेरी मां नहीं है 
तो झुर्रियां चेहरे पे बढ़ गयी 
आवाज मेरी मुरझा गयी 
और बाल अनयस सफ़ेद 
लहरों सी क्रीड़ा करती-
थोड़ी खारी और संजीदा
आज गहरा समंदर हुई मैं 
मानो मुझे युवा रखने की
मां  के पास कोई बूटी थी !

कुछ सोच मेरी बेटी बोली 
नानी...आपके लिए मलाई-
बालों में मालिश का तेल थी 
आप तितली सी सुन्दर हलकी
नानी आपके लिए सुंदर फूल 
मां ! मेरे गालो की आप मलाई
और बालो के लिए मालिश तेल 
मेरी छुट्टी तीरथ मिठाई आप हो 
फिर जरा धीमे से प्रौढ़ा हो बोली -
हर मां के पास अक्षत यौवन देती 
जादू की बूटी एक मां होनी चाहिए 
मां! आपकी सेहत का वो राज थी 
मेरी भी युवावस्था का राज आप हो



Monday, 21 January 2019

शिवोहम शिवोहम शिवोहम

शिवोहम शिवोहम शिवोहम
शिवोहम शिवोहम शिवोहम

i am the suprem bliss , i am the suprem bliss,  i am the suprem bliss 
i am the suprem bliss , i am the suprem bliss , i am the suprem bliss 

शान्ताकारस्वरूपा शिवोहम शिवोहम
प्रेमरूपस्वरूपा शिवोहम शिवोहम

The shape of peace , i am the suprem bliss, i am the suprem bliss  
The shape of love , i am the suprem bliss , i am the suprem bliss 

पवित्रोहं पवित्रोहं पवित्रोहं पवित्रोहं
शिवोहम शिवोहम शिवोहम
i am pure , i am pure , i am pure , i am pure
i am the suprem bliss , i am the suprem bliss , i am the suprem bliss 

परमंशक्तिसंयुक्ता शिवोहम शिवोहम
ज्ञानरूपस्वरूपा शिवोहम शिवोहम
Equipped with super power i am the suprem bliss i am the suprem bliss 
the shape of ultimate wisom i am the suprem bliss i am the suprem bliss 

पवित्रोहं आनंदोहं पवित्रोहंआनंदोहं
शिवोहम शिवोहम शिवोहम
i am pure i am peace i am pure i am peace
i am the suprem bliss i am the supreme bliss i am the supreme bliss 

अतीन्द्रयसुखानुभुक्ता शिवोहम शिवोहम
आनंदात्मस्वरूपा शिवोहम शिवोहम
Experienced of Para senses i am the suprem bliss i am the supreme bliss 
I am Peaceful Soul i am the supreme bliss i am the supreme bliss 

आनंदोहं आनंदोहं आनंदोहं आनंदोहं
शिवोहम शिवोहम शिवोहम
I am Peace I am Peace I am Peace I am peace 
i am the suprem bliss i am the suprem bliss i am the suprem bliss 


17-01-2019
Lata

Tuesday, 6 November 2018

सबक

कभी जिंदगी में अगर थक  जाओ
किसी को कानोकान खबर न होने देना
लोग टूटी ईमारत की ईंट तक उखाड़ के ले जाते है

तुम कुछ चाह भी नहीं सकते
अगर खुदा न चाहे

जरुरी नहीं किसी की बद्दुआ  तुम्हारा पीछा कर रही हो
कभी किसी का जब्त  और बेपनाह  सब्र भी तुम्हारी खुशियों को रोक लेता है

कोई हाथ से छीन के ले जासकता है .. पर नसीब से नहीं

इंसान की मर्जी  और ईश्वर की मर्जी का फर्क भी *गम है

कल एक इंसान रोटी के बदले  करोड़ों की दुआ दे गया
पता ही नहीं चला के गरीब कौन

शख्सियत अच्छी थी
ये लब्ज़  तब सुनने को मिलते हैं  जब शख्स ही नहीं रहता

बंधी हैं हाथ में सभी के घडिया
पर पकड़ में  हाथ में वख्त का लम्हा किसी के भी नहीं

कितने चालाक हैं मेरे अपने भी
तोहफे में घडी तो दी पर वख्त नहीं।
दुआ तो दिल मांगी जाती है  जुबान से नहीं
कुबूल तो उसकी भी होती है जिसके जुबान ही नहीं

पीठ हमेशा मजबूत ही चाहिए
क्यूंकि शाबासियाँ और छुरे ;  पीठ पे ही मिलते हैं।

अपनी दौलत पे कभी ऐतबार न करना
क्यूंकि जो गिनती में आ जाये  वो लाज़मी  ख़तम होने वाला है

जब भी गुनाह करने का दिल चाहे  तो चार बातें याद रखो
भगवन देख रहा है , फ़रिश्ते लिख रहे है  ,
मौत हर हाल में आनी  है , और वापिसी का टिकिट  भगवन ने साथ भेजा है।

कुछ सवालो के जवाब सिर्फ वख्त देता है
और जो जवाब वख्त देता है वो लाजवाब होते हैं।

दो तरीके के इंसानो से हमेशा होशियार रहो
जो तुममे वो ऐब बताये जो तुममे है नहीं  या दूसरा वो जो  तुममे वो खूबी बताये  जो तुममे नहीं।

झूठ का भी एक जायका होता है , खुद बोला तो मीठा , दूसरा बोले तो कडुवा।

जब इंसान  समझता है  की वो गलत भी हो सकता है  तो वो ठीक होने लगता है।

पिता की दौलत पे क्या घमंड करना , मज़ा तो तब है  दौलत अपनी हो और घमंड पिता करे ।

ऐ  खुदा  आईना कुछ ऐसा बनादे , जो चेहरा नहीं नियत  दिखा  दे।

शतरंज में वजीर ,  और जिंदगी में जमीर मर जाये तो खेल ख़तम समझलो

इंसान की इंसानियत ख़तम होजाती है , जब दूसरों के दुःख पे हंसी आने लगे।

एक बात हमेशा याद रखना , जिंदगी में किसी को धोखा न देना
धोखे में बड़ी जान होती है  ये कभी नहीं मरता , घूमकर आपके पास लौट आता है।
क्यूंकि इसको अपने ठिकाने से बहुत मोहब्बत होती है।

अजीब तरह से गुजरती है जिंदगी
सोचा कुछ ,  हुआ कुछ , किया कुछ , मिला कुछ।









Sunday, 2 September 2018

हाँ तो! उसके मुस्कराने का अर्थ समझ आया के नहीं !



शख्सियत द्वित्व की, छलांग अद्वैत की 
वे कहते जावे हैं - 'हैरत में हूँ निःशब्द हूँ क्या कहूं !'
सयाने जानते हैं सूचना में है सो कहने से पहले बूझते है 
ऊर्जावान तत्व प्रवाहशील  
आत्मतत्व है जल्वत, सो कहते जावे हैं -
जीवनदाता पानी रे पानी तेरो रंग कैसा रे! 
जामे मिल जावे लगे उसई जैसा रे...।
बिलकुल शक्तिपुंज जैसा रे 
और कहे हैं ! हरी बोल ! 

अद्वैत से जब जन्मे और द्वित में आये तो 
देह अलग अलग मति अलग अलग 
द्वित्व कहें तो एक की नजर में सामने वाला 
एक पक्ष यानी एक समूह 
ऐसे में देह समूह तो देह प्रथम हुई 
प्रथम बोले  तो प्राथमिकता 
मानव समूह हुआ तो मानव ही प्रथम प्राथमिक 
देश तो देश प्रथम ,  धर्म तो धर्म प्रथम 
समूह जब जैसा बना उसी का गान सुनाई देवेगा
अपने ही समूह की आवाज और धड़कन 
उसई  की पूजा  उसई  के संस्कार 
दिखाई देवे, कहाई, और सुनाई देवे है ....।

यही राजनीती में देखा यही धर्मनीति में 
समस्या खड़ी दल-समूह बदलते ही 
जैसे दिखना सुनना कहना सब बंद.....
द्वित अजूबा नहीं निहायत प्राकृतिक होवे है ....
परदेसियों की बोली भाषा होव है ....पर 
परदेस की आवाज ही कहाँ सुनाई देवे है ... ? 
सुन भी लें तो , समझ न आवे है ! 
सहजता खोयी गई  स्वीकृति के आभाव में 
पूरी की पूरी जन्मी घटनाये ही , मानोअजूबा लागे है ....। 

ऐसे समूह बदलते ही, समस्या खड़ी होवे है 
अगले का कछु कहा अब सुनाई न देवे है ...
दिखाई न देवे .....छूना तो नामुमकिन भया .....
द्वित्व में ये इन्द्रियां भी अपने ही समूह में काम करे हैं 
आप्रेसन करवा  देखा परदेसी को गैर-एलिमेंट जान 
मुई ये देह भी त्याग देवे है ...

ऐसे में इसी द्वित्व के साथ मजबूर हो 
एक भक्त ने अपने भगवान् को ऐसा अनकहा कहा
एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को बेबूझ ही कह डाला 
तो ; प्रेमिका ने अपने प्रेमी को कुछ ऐसन कहा
सालों साथ रह लगा के सच्ची में ! 
सम्बन्ध-जगत .. द्वित्व संग बेबूझ होवे है ....। 

ऐसे में , समूचे मृतजगत वासियों ने 
पूरे अमृत-जगत को ही बेबूझ कहा, 
और भी कहा-
-'जितना भी कहता जाता हूँ तुम अनकहे ही रहते हो '
तो; आगे सुनें , ऐसे में  द्वित्व जगत में 
आत्मा को भी हम हिलते डुलते प्राणी 
महामूर्ख नजर आये जब आत्मा को महामूर्ख नजर आये तो 
परमात्मा .....! हाँ अब आप कल्पना कर सके हैं ! 
द्वित्व में अद्वैती महाधामवासी हमको कैसे देखे है ....।

हाँ तो! उसके मुस्कराने का अर्थ समझ आया के नहीं !