Thursday, 24 January 2019

मां


प्रेम और श्रद्धा पूर्वक जीवनदायी मां और मातृ-भाव को समर्पित
(release on 28 January 2019 onwards)




नब्बे वर्ष पूरे कर सकी थी 
बस नब्बे की थी, मेरी मां 
कृषकाय क्षीर्ण जर्जर देह 
अपनी मां को सालों पहले 
खोने के बाद वृद्ध हुई थी 
और मैं पछत्तर की युवती 
एक मेरी भी बेटी, युवा है 
शायद मेरे कारन युवा है 

मैं माँ के साथ जगमग थी 
बस कंधे पे हाथ रख देती 
पूछती स्नेह भर- कैसी हो!
और मैं भूल जाती पीड़ायें 
आखिर ऐसा क्या जादू था 
प्रेमबोल चेहरे का लोशन
झुर्रियां पड़ने ही नहीं देते 
घने मेघ से केश दमकते 
मैं सतत मुस्कराती रहती 
मेरी आवाज में चहकन-
और मां गुनगुनाती रहती
मानो नदी बेसाख्ता बहे.. 
पर आज मेरी मां नहीं है 
तो झुर्रियां चेहरे पे बढ़ गयी 
आवाज मेरी मुरझा गयी 
और बाल अनयस सफ़ेद 
लहरों सी क्रीड़ा करती-
थोड़ी खारी और संजीदा
आज गहरा समंदर हुई मैं 
मानो मुझे युवा रखने की
मां  के पास कोई बूटी थी !

कुछ सोच मेरी बेटी बोली 
नानी...आपके लिए मलाई-
बालों में मालिश का तेल थी 
आप तितली सी सुन्दर हलकी
नानी आपके लिए सुंदर फूल 
मां ! मेरे गालो की आप मलाई
और बालो के लिए मालिश तेल 
मेरी छुट्टी तीरथ मिठाई आप हो 
फिर जरा धीमे से प्रौढ़ा हो बोली -
हर मां के पास अक्षत यौवन देती 
जादू की बूटी एक मां होनी चाहिए 
मां! आपकी सेहत का वो राज थी 
मेरी भी युवावस्था का राज आप हो



Monday, 21 January 2019

शिवोहम शिवोहम शिवोहम

शिवोहम शिवोहम शिवोहम
शिवोहम शिवोहम शिवोहम

i am the suprem bliss , i am the suprem bliss,  i am the suprem bliss 
i am the suprem bliss , i am the suprem bliss , i am the suprem bliss 

शान्ताकारस्वरूपा शिवोहम शिवोहम
प्रेमरूपस्वरूपा शिवोहम शिवोहम

The shape of peace , i am the suprem bliss, i am the suprem bliss  
The shape of love , i am the suprem bliss , i am the suprem bliss 

पवित्रोहं पवित्रोहं पवित्रोहं पवित्रोहं
शिवोहम शिवोहम शिवोहम
i am pure , i am pure , i am pure , i am pure
i am the suprem bliss , i am the suprem bliss , i am the suprem bliss 

परमंशक्तिसंयुक्ता शिवोहम शिवोहम
ज्ञानरूपस्वरूपा शिवोहम शिवोहम
Equipped with super power i am the suprem bliss i am the suprem bliss 
the shape of ultimate wisom i am the suprem bliss i am the suprem bliss 

पवित्रोहं आनंदोहं पवित्रोहंआनंदोहं
शिवोहम शिवोहम शिवोहम
i am pure i am peace i am pure i am peace
i am the suprem bliss i am the supreme bliss i am the supreme bliss 

अतीन्द्रयसुखानुभुक्ता शिवोहम शिवोहम
आनंदात्मस्वरूपा शिवोहम शिवोहम
Experienced of Para senses i am the suprem bliss i am the supreme bliss 
I am Peaceful Soul i am the supreme bliss i am the supreme bliss 

आनंदोहं आनंदोहं आनंदोहं आनंदोहं
शिवोहम शिवोहम शिवोहम
I am Peace I am Peace I am Peace I am peace 
i am the suprem bliss i am the suprem bliss i am the suprem bliss 


17-01-2019
Lata

Tuesday, 6 November 2018

सबक

कभी जिंदगी में अगर थक  जाओ
किसी को कानोकान खबर न होने देना
लोग टूटी ईमारत की ईंट तक उखाड़ के ले जाते है

तुम कुछ चाह भी नहीं सकते
अगर खुदा न चाहे

जरुरी नहीं किसी की बद्दुआ  तुम्हारा पीछा कर रही हो
कभी किसी का जब्त  और बेपनाह  सब्र भी तुम्हारी खुशियों को रोक लेता है

कोई हाथ से छीन के ले जासकता है .. पर नसीब से नहीं

इंसान की मर्जी  और ईश्वर की मर्जी का फर्क भी *गम है

कल एक इंसान रोटी के बदले  करोड़ों की दुआ दे गया
पता ही नहीं चला के गरीब कौन

शख्सियत अच्छी थी
ये लब्ज़  तब सुनने को मिलते हैं  जब शख्स ही नहीं रहता

बंधी हैं हाथ में सभी के घडिया
पर पकड़ में  हाथ में वख्त का लम्हा किसी के भी नहीं

कितने चालाक हैं मेरे अपने भी
तोहफे में घडी तो दी पर वख्त नहीं।
दुआ तो दिल मांगी जाती है  जुबान से नहीं
कुबूल तो उसकी भी होती है जिसके जुबान ही नहीं

पीठ हमेशा मजबूत ही चाहिए
क्यूंकि शाबासियाँ और छुरे ;  पीठ पे ही मिलते हैं।

अपनी दौलत पे कभी ऐतबार न करना
क्यूंकि जो गिनती में आ जाये  वो लाज़मी  ख़तम होने वाला है

जब भी गुनाह करने का दिल चाहे  तो चार बातें याद रखो
भगवन देख रहा है , फ़रिश्ते लिख रहे है  ,
मौत हर हाल में आनी  है , और वापिसी का टिकिट  भगवन ने साथ भेजा है।

कुछ सवालो के जवाब सिर्फ वख्त देता है
और जो जवाब वख्त देता है वो लाजवाब होते हैं।

दो तरीके के इंसानो से हमेशा होशियार रहो
जो तुममे वो ऐब बताये जो तुममे है नहीं  या दूसरा वो जो  तुममे वो खूबी बताये  जो तुममे नहीं।

झूठ का भी एक जायका होता है , खुद बोला तो मीठा , दूसरा बोले तो कडुवा।

जब इंसान  समझता है  की वो गलत भी हो सकता है  तो वो ठीक होने लगता है।

पिता की दौलत पे क्या घमंड करना , मज़ा तो तब है  दौलत अपनी हो और घमंड पिता करे ।

ऐ  खुदा  आईना कुछ ऐसा बनादे , जो चेहरा नहीं नियत  दिखा  दे।

शतरंज में वजीर ,  और जिंदगी में जमीर मर जाये तो खेल ख़तम समझलो

इंसान की इंसानियत ख़तम होजाती है , जब दूसरों के दुःख पे हंसी आने लगे।

एक बात हमेशा याद रखना , जिंदगी में किसी को धोखा न देना
धोखे में बड़ी जान होती है  ये कभी नहीं मरता , घूमकर आपके पास लौट आता है।
क्यूंकि इसको अपने ठिकाने से बहुत मोहब्बत होती है।

अजीब तरह से गुजरती है जिंदगी
सोचा कुछ ,  हुआ कुछ , किया कुछ , मिला कुछ।









Sunday, 2 September 2018

हाँ तो! उसके मुस्कराने का अर्थ समझ आया के नहीं !



शख्सियत द्वित्व की, छलांग अद्वैत की 
वे कहते जावे हैं - 'हैरत में हूँ निःशब्द हूँ क्या कहूं !'
सयाने जानते हैं सूचना में है सो कहने से पहले बूझते है 
ऊर्जावान तत्व प्रवाहशील  
आत्मतत्व है जल्वत, सो कहते जावे हैं -
जीवनदाता पानी रे पानी तेरो रंग कैसा रे! 
जामे मिल जावे लगे उसई जैसा रे...।
बिलकुल शक्तिपुंज जैसा रे 
और कहे हैं ! हरी बोल ! 

अद्वैत से जब जन्मे और द्वित में आये तो 
देह अलग अलग मति अलग अलग 
द्वित्व कहें तो एक की नजर में सामने वाला 
एक पक्ष यानी एक समूह 
ऐसे में देह समूह तो देह प्रथम हुई 
प्रथम बोले  तो प्राथमिकता 
मानव समूह हुआ तो मानव ही प्रथम प्राथमिक 
देश तो देश प्रथम ,  धर्म तो धर्म प्रथम 
समूह जब जैसा बना उसी का गान सुनाई देवेगा
अपने ही समूह की आवाज और धड़कन 
उसई  की पूजा  उसई  के संस्कार 
दिखाई देवे, कहाई, और सुनाई देवे है ....।

यही राजनीती में देखा यही धर्मनीति में 
समस्या खड़ी दल-समूह बदलते ही 
जैसे दिखना सुनना कहना सब बंद.....
द्वित अजूबा नहीं निहायत प्राकृतिक होवे है ....
परदेसियों की बोली भाषा होव है ....पर 
परदेस की आवाज ही कहाँ सुनाई देवे है ... ? 
सुन भी लें तो , समझ न आवे है ! 
सहजता खोयी गई  स्वीकृति के आभाव में 
पूरी की पूरी जन्मी घटनाये ही , मानोअजूबा लागे है ....। 

ऐसे समूह बदलते ही, समस्या खड़ी होवे है 
अगले का कछु कहा अब सुनाई न देवे है ...
दिखाई न देवे .....छूना तो नामुमकिन भया .....
द्वित्व में ये इन्द्रियां भी अपने ही समूह में काम करे हैं 
आप्रेसन करवा  देखा परदेसी को गैर-एलिमेंट जान 
मुई ये देह भी त्याग देवे है ...

ऐसे में इसी द्वित्व के साथ मजबूर हो 
एक भक्त ने अपने भगवान् को ऐसा अनकहा कहा
एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को बेबूझ ही कह डाला 
तो ; प्रेमिका ने अपने प्रेमी को कुछ ऐसन कहा
सालों साथ रह लगा के सच्ची में ! 
सम्बन्ध-जगत .. द्वित्व संग बेबूझ होवे है ....। 

ऐसे में , समूचे मृतजगत वासियों ने 
पूरे अमृत-जगत को ही बेबूझ कहा, 
और भी कहा-
-'जितना भी कहता जाता हूँ तुम अनकहे ही रहते हो '
तो; आगे सुनें , ऐसे में  द्वित्व जगत में 
आत्मा को भी हम हिलते डुलते प्राणी 
महामूर्ख नजर आये जब आत्मा को महामूर्ख नजर आये तो 
परमात्मा .....! हाँ अब आप कल्पना कर सके हैं ! 
द्वित्व में अद्वैती महाधामवासी हमको कैसे देखे है ....।

हाँ तो! उसके मुस्कराने का अर्थ समझ आया के नहीं !

Saturday, 1 September 2018

मैं एक आत्मा हूँ : The Soul एक परिचय (poetical Intro)






मैं एक आत्मा हूँ
देह! सुन्दर व्यवस्था, मेरे लिए
मेरे हाथ में लेखनी प्रारब्ध की
स्याही भरी है इसमें भाग्य की

मैं एक आत्मा हूँ
कोरा कागज है, इसके हाथ में
प्रारब्धलेखनी से निर्देशित लेख
भाग्यस्याही लिखती बनते कर्म

मैं एक आत्मा हूँ
सुविधा है मुझे थामी लेखनी से
क्या लिखू जो स्याही बन उभरे
मेरे कोरे कागज को पूरा रंग दे

मैं एक आत्मा हूँ
चेतना मेरी ही समझ का हिस्सा
जो मुझे शक्ति रूप मिला हुआ
चाहूँ जब, लेखनी को विश्राम दूँ

मैं एक आत्मा हूँ
समझती हूँ लेखनी के रुकते ही
रुक जाएगी फैलती भाग्यस्याही
और उभरे अक्षर कोरे कागज पे

मैं एक आत्मा हूँ
मेरी शक्ति जिससे प्रारब्ध हारा
भाग्यसहमा कर्मचाक ज्यूँ थमा
पाया कागज कोरा का कोरा है

_()_


Friday, 18 May 2018

A North Indian Rural Marriage Folk - कनउजी कनउजी जनि करो बाबा ...

उत्तर भारतीय विवाह लोक गीत

A North Indian  Rural  Marriage Folk   




गीत 

कनउजी कनउजी जनि करो बाबा , तो कनउजी हैं बड़ी दूर 
अरे इ कनवाजिया  दहेज़ बड़ो मांगे 
तो तेरे बूते दियो नहीं जाए
 *****

कहाँ पइओ बाबा मोरे अनगढ़ सोनवा  
तो कहाँ पयियो लहर पटोर , कहाँ पईयो बाबा मोरे  सोने की चिरईया 
तो इ कनवाजिया को मोल
 *****

बाबा कहते है -
सोनरा घरे बेटी अनगढ़ सोनवा तो बज्जा के लहर पटोर 
ओ तुम तो बेटी मेरी सोने की चिरईया
तौ  ई  कनवाजिया  को मोल
 *****

अब  आगे बेटी मन में सोचती है -

माया ने दीन्हो है  अनगढ़ सोनवा तो बाबा ने लहर पटोर 
भईया  ने दिनों है चढान को घोडिला 
तो भाभी ने ढोली भरे पान
*****

माया का सोना जनम भर पहिनब, फटी जाईये लहर पटोर 
भईया का घोडीला मै सहर घुमाईहों, 
तो सड़ी जाईये ढोली भरे पान
*****




आगे और सोचती है  अपनी भावनाओं को समझती है , विदा के समय अंतिम पंक्तियों में बहुत मार्मिक और भावुक भाव है -


विवाह संपन्न हो गया अब  विदा की बेला है :


माया  के रोये से छतिया फटत है , तो बाबा  के रोये सागर ताल
और भइआ  के रोये से पटुका  भीगत है
तो भाभी खड़ी मुसिकाएँ
 *****

मां  और बाबा  , भइआ  के  साथ में भाभी भी  इस भावभीनी  विदा की बेला पे क्या सोचती है -

माया कहें बेटी नित उठी आयो  तो बाबा कहे  छठे मॉस 

औ भईया कहें बहिनी काम औ काजे 

तो भाभी कहें काह काम
******

The End  of  folks 

कनउजी कनउजी जनि करो बाबा , तो कनउजी हैं बड़ी दूर 
अरे इ कनवाजिया  दहेज़ बड़ो मांगे 
तो तेरे बूते दियो नहीं जाए 

सन्दर्भ-

त्तरभारत में दो मुख्य ब्राह्मण समुदाय कान्यकुब्ज ( गंगा नदी के पार बसने वाले )  और सर्यूपारिणी (सरयू नदी  के पार बसने वाले )  इन दो मे से भी ये गीत खास कर कान्यकुब्ज समुदाय में विवाह समारोह में महिलाओं की ढोलक मंजीरे के साथ खासा प्रचलित है 

References - Two of the main Brahmin communities Kanyakub (across the river Ganges) and Sarayuparini (settling across the Saryu river) in North India, among these two especially in the Kanyukub community, this song is very popular with the dholak Manjira In marriages

लोकगीतों की खूबी है की वो समुदाय की अच्छाईयां और बुराईयां  गीत में गा के कहते हैं , सो इसमें भी यही है , विवाह योग्य  एक बेटी अपने पिता से पूछती है  कई सवाल , दहेज़ से सम्बंधित 

It is the fame of the folk songs that they are called in the songs of goodness and evil of the society through the song, so this is the same in this, a marriageable daughter  asks her father, many questions, related to dowry and  worried how her father  arranged all 

 बाद के  गीत बोलों में वो अपने भाव प्रकट करती है  सम्बन्धो की वास्तविकता को लेके , मां का प्रेम कितना पवित्र है उसके लिए , कितना शुद्ध है  पर पिता उससे  थोड़ा कम है  , मां  की निश्चलता के आगे पिता की एक डिग्री  फीकी है  और भाई की और कम  जबकि भाभी की शून्य,  जो उनकी भावनाओ में उनकी सोच में  उनके उपहारों के चुनाव में  दिखता भी  है 

In the subsequent song lyrics, he expresses his feelings, taking the reality of the relationship, for how much the love of the mother is pure, how pure it is, but the father is little less than that, a degree of a father is faded and the brother's less  from her father and brother's wife have  zero-effection  so all reflected  in their  emotional dealings and wishes 

स गीत में  परायी हुई नहीं  पर होने जा रही बेटी की संवेदनशीलता  बहुत सुन्दर ढंग से उभरी है , जहाँ उसे पल पल  लग रहा है  की इस विवाह की रस्मअदायगी के बाद वो विदा कर दी जाएगी।  और फिर... 


In The song, She is in her parental home, but the sensitivity of the daughter going to be very beautiful has emerged, where she is feeling the moment that the marriage ceremony will be done after she handed over to In-laws and then...

उसको अपनी मां की भावना भी छू रही है  जहाँ उसे लग रहा की मां सब जानती है  लोकाचार के बारे में  और इसीलिए वो उदास भी है , वो चाहती हैं की मैं उनसे रोज मिलने आऊं ।  पर मेरे पिता चाहते है  छह माह से पहले नहीं आना चाहिए , और मेरे  भाई तो कहते है  काम काज हो तो आ जाना  बार बार क्या आना , ....भाभी शायद  इतना भी नहीं चाहती  इसलिए वो सिर्फ मुस्करा के रह जा रही है .....

She is also feeling, the intuitive-feeling of her own mind, where her mother feels the reality of everything, her mother knows about ethics of society and that is why she is also very sad, She wants me to come visit her every day. But my father does not want to come before of six months, and my brother says that if I can come in marriages or festivals then will be good and Brother's wife wants even then no need to come.. better to stay in husband's home, so she is just giving Smiles.

enjoy !!

प्रणाम 

Monday, 7 May 2018

विरोधाभास - मानो या न मानो



[महाध्यानी वो ज्ञानीयोगी ये और हमध्यानी ]


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शिव के जब दो नेत्र खुले है जब तीसरा कहाँ खुला होता है
तीसरा नेत्र खुलते ही, वे दो स्वतः महाध्यानी के बंद होते है



ये जागृत आधे पे ठहर गया आधेआधे में सौदा पक्का हुआ
दो नेत्र ज्यूँ आधे बंद हुए, तीसरा उतना ही स्वतः खुल गया


संकेत ही संकेत, मुझ से शिवा तक, आधे खुले पूरे ढके भी
ज्ञानीयोगी अर्धबंद अर्धखोल पाते, हम मूँद करही खोलते है


जानो जब आँखे बंद किये हैं तब अपनी आँखे खोले होते हैं
जब हम मौन में होते है तभी हम, असल बात करते होते है


धूनी लगा बैठ गए हों, तब ही हम लम्बी यात्रा शुरू करते है 
वधु लम्बे-घूँघट में ! तो उसका अनावरण वहीँ शुरू होता है


मृतदेह मुँह तक ढांप एक श्वेतवस्त्र पहनाने की रस्म यही है
ये अध्याय समाप्त हुआ अगला जीवन अध्याय शुरू होता है 

ॐ प्रणाम 

© लता  
१२: ४० दोपहर 
७ / ५ / २०१८