Monday, 7 May 2018

विरोधाभास - मानो या न मानो



[महाध्यानी वो ज्ञानीयोगी ये और हमध्यानी ]


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शिव के जब दो नेत्र खुले है जब तीसरा कहाँ खुला होता है
तीसरा नेत्र खुलते ही, वे दो स्वतः महाध्यानी के बंद होते है



ये जागृत आधे पे ठहर गया आधेआधे में सौदा पक्का हुआ
दो नेत्र ज्यूँ आधे बंद हुए, तीसरा उतना ही स्वतः खुल गया


संकेत ही संकेत, मुझ से शिवा तक, आधे खुले पूरे ढके भी
ज्ञानीयोगी अर्धबंद अर्धखोल पाते, हम मूँद करही खोलते है


जानो जब आँखे बंद किये हैं तब अपनी आँखे खोले होते हैं
जब हम मौन में होते है तभी हम, असल बात करते होते है


धूनी लगा बैठ गए हों, तब ही हम लम्बी यात्रा शुरू करते है 
वधु लम्बे-घूँघट में ! तो उसका अनावरण वहीँ शुरू होता है


मृतदेह मुँह तक ढांप एक श्वेतवस्त्र पहनाने की रस्म यही है
ये अध्याय समाप्त हुआ अगला जीवन अध्याय शुरू होता है 

ॐ प्रणाम 

© लता  
१२: ४० दोपहर 
७ / ५ / २०१८ 

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