Sunday, 5 April 2020

सच ! किताबें तो बहुत बाद में बनती हैं




सच ! किताबें तो बहुत बाद में बनती हैं 
वन्य जीवन में आदम वनजीव होता है 
भूख भोजन प्यास नींद और कामाचार
संतान जन्मती वन्यस्त्री उससी होती है 
के उसकी चेतना बोली- तुम चैतन्य हो 
महाचिंत-मनुष सहसा देव बन बैठता है

और जा बैठता ज्ञान की उत्तंग छोटी पे 
इकोर अज्ञानता की धुंध घाटी में फैली 
ऊपर उन्नत स्वच्छ अक्ष पसरा होता है
शिवसम लटें खोल गंगधारण करता है
शीतल जलधार से ज्ञान प्रसार करता है 


संग्रह में वृक्ष से प्राप्त भोज-पत्र होता है  
इंसानी यौगिक-बुद्धि की  सोच होती है 
बैठक बैठ दवात कलम हाथ में लेता है  
कलम-नुक्की से उतर  'सोच'  बहती है
तब जा लेखों में कई कथायें उभरती हैं  

ताम्रपत्र के ऊपर ठढे मेढ़े अक्षर बनते
शिला पे लेख बन कुछ शब्द उभरते हैं
कुशल कारीगर के छेनीहथोड़ी मार से
उससे पूर्व उस  'सोच' के बारे में सोचो
जिसके अभ्यास और तप गहरे होते हैं 

तो अब किताब के बारे में सोचो तनिक 
मौन किताबें बहुत कुछ कहती हैं तुमसे 
इस विषय या उस विषय की बातें करती
तकिया, सपने, तो कभी आस ये किताबें 
सदा तुम्हारे पास रहना चाहती किताबें हैं 

कभी युगीन-साहित्य, कभी कथा-शास्त्र 
कभी भाव की गीतमाला कभी संगीत हैं 
गरुगंभीर गुरु हो चित्ताकाश में उड़ती हैं
कभी विज्ञान हो प्रमाणअम्बर में ले जाती
युद्धलहु से भीगीं कभी तितली किताबें हैं 

चहकें चिड़िया सी ये,  कभी बम की दहक
कभी तितली से उड़ते भाव इनमे, तो कभी 
जिंदगी बन अपने सामने दर्पण सी खड़ी है 
रेत, खेत, जंगल, झरने सी निर्झर, फूलहार
रॉकेट कभी उल्का कभी ब्रह्माण्ड किताबें हैं 

प्रमाण को प्रमाणिकता, कल्पना को उड़ान
रागी को राग, विरागी को वैराग्यपाठ दर्शन
खोजी को खोजसूत्र आलसी को प्रमाद देती
कला को कौशल कर्मयोग को कर्मपथ देती 
खजाने खोल के बैठी, तुम्हे जो चाहिए ले लो

सागर से गहरी आसमां से ऊँची ये किताबें
कल, आज, कल की बात करना चाहती हैं
नक्षत्रों का उजाला पाताळ का अँधेरा इनमे 
मौन हैं ज्ञान का सागर हैं ये वाचाल किताबें 
सचझूठ के खेल तुमपे छोड़ती ये किताबें हैं 

सावधान करती प्रकति के नियम कहती हैं 
कभी तुम्हारे होने की ही खुदाई कर देती हैं
भोली हैं सरल और प्रचुर खदान हैं किताबें 
तब आ के मिलता तुमसे नया रूप तुम्हारा 
तुम्हारे पास रहके कुछ कहती ये किताबें हैं 

हमसे बनी हैं बिलकुल हमारे ही जैसी हैं ये
कभी इतिहास कभी भूगोल कभी वाणिज्य 
कभी नर्तन कभी तांडव कभी मंगलगान हैं
हजारों विषय और सैकड़ों कथाएं रुचिकर  
कभी कला कभी दर्शन का सार किताबें हैं 

क्या तुम समय निकाल सुनना चाहोगे इन्हे?
निःसंकोच...अकेले सुनना, अकेले काफी हो

तो जाओ न ! खंगालो अपनी बंद अलमारी 
झाड़ लेना बरसों जम गयी जो धुल इनपे है
इन्हे ले के बैठना अपनी साफ़ सी बैठक में 
या  निकल जाना बाग़ के पेड़ की  छाया में
कोई कॉफी हॉउस एक कुर्सी और किताब

मोहल्ले का कोई एक उपेक्षित पुस्तकालय 
जा बैठ जरा वख्त बिताना सीखना सिखाना
फ़िलहाल किताबो के लिए इतना काफी है
फिर न छूटेंगी नदी किनारे या सागरतट पे 
या हो गाडी का डब्बा, या जहाज का सफर 

एकांत में तुम्हारा अद्भुत संसार बसाती हैं 
नैराश से निकाल आशा के स्वप्न सजाती हैं 
उम्मीदों की सीढ़ी बन एक एक पायदान हैं 
सुनो! ये अंतिम उपलब्धि भी तुम्हारी नहीं हैं 
बंधन में बाँध तुम्हे मुक्त करती ये किताबे हैं 

क्रमश:क्रम में किताबें बहुत बाद आती हैं
सच है ! किताबें तो बहुत बाद में बनती हैं 

Friday, 3 April 2020

आस्था के दीप

आस्था के दीप
Lamp of Faith



सुनो ! ये आस्था के दीप से दीपमलिका बनाने की बात है 


कुछ तो इस सोच के पीछे... सोचो ! क्या बात है

एक एक जीवनऊर्जा का महत्त्व जिसमे रहता है

बूँद बूँद  से सागर बने , ऐसी...आस्था की बात है


एक एक जीवशक्ति महाशक्ति का संगमस्नान है

ऐसी अलौकिक 'एक' महा-शक्ति का संयुक्त होना हैं

तुच्छनराधम रक्तबीज-देवी का वैश्विकयुद्ध कहते हैं

रक्तबीज नाश करती शक्ति ये देवी दुर्गा की बात है


एक एक जीवनशक्ति से महा-शक्ति का दर्शन है

ऐसा भारत का दर्शन है, अभूतपूर्व दृष्टिदर्शन है

एक एक शक्ति एकजुट हो  बने एक महाशक्ति  

महा शक्ति से  फिर उसके ईश्वर होने की बात है


कुछ तो इस सोच के पीछे... सोचो ! क्या बात है

एक एक जीवनऊर्जा का महत्त्व जिसमे रहता है

बूँद बूँद से सागर बनता ऐसी...आस्था की बात है


एक एक जीव शक्ति महाशक्ति का संगम-स्नान है

शक्ति महाशक्ति ईश्वर का विराट्स्वरुप समाया है

अब हमारी बारी है अब उचित चिंतन का आग्रह है


शक्ति महाशक्ति ईश्वर का विराट्स्वरुप समाया है

अब हमारी बारी है अब उचित चिंतन का आग्रह है

उसी शक्तिपुंज दीप के प्रज्ज्वलन का आह्वाहन है

हर दीप के ज्वाला में समायी महाअग्नि की बात है


लौ से निकलती हजारो प्रकाश किरणों की बात है

उनमे से भी सिर्फ एक किरण, उस्पे सवार हो बैठी 

मनुष्य की चेतना करती तमस को पार, की बात है

अभूतपूर्व सोच दर्शन नतमस्तक हो मन की बात 


हृदयदीप प्रज्ज्वल हो तुम बस विश्वास जगाने की बात है

महाशक्ति के निज महाविराट रूप दिखाने की बात है 

हमारी तुम्हारी बात है ये हमारे ऊर्जा संकल्प की बात है

सुनो ! आस्था के दीप से दीप-मलिका बनाने की बात है


सुनो ! ये आस्था के दीप से दीपमलिका बनाने की बात है
 
अमावस के  अँधेरे, मिल-जुल दिवालीपर्व मनाने की बात है 

Monday, 10 February 2020

भाई अब्दुल्ला


भाई अब्दुल्ला कैसे-कैसे जो सब कह रहे
ये तो हमने सदियों पहले ही कह दिया था
बहुत दोहराया बहुत बार कंठस्थ किया है
फर्क ही समझ नहीं आया, बोलो क्या करें
तकरीबन भी समूल सब एक है, क्या करें!

घर का नन्हा मनुहार से प्राणयोग सिखाता
सांस लेता मुस्करा के जब तरकीब देता है
उसपे घुड़की भी के बुजुर्ग बच्चा न समझे
बच्चे सी जिद्द ले बैठे ऐसे बैठो यूँ ही झुको
देखो न दिल पे हाथ हमने रखा तो हुआ है

अब... कितनी बार वो ही एक बात कहेंगे!
अपनी ही बात मनवाते हो घर के बुजुर्ग से
पर उसका कहा तुमको समझ नहीं आता
अजब खेल तुम्हारे लड़कपन-मिजाजी के
न खुद बड़े होते हो, न उसे ही होने देते हो

हाय-तौबा मचा रखी बेवजह तुमने कब से
हम और तुम क्या अलग भाषा बोल रहे है!
घर्षण हमारे कंठ में और कम्पन जिव्हा में
दौड़ता रक्त, लगती भूख सोच निद्रा भी है
जन्म से लेकर मृत्यु का मार्ग हमारा एक है

हे राम अब क्या कहें, बोलो तुम्हे क्या कहें
अड़ियल बच्चे सी नादानजिद्द जो करते हो
न करो खिलवाड़ अपनी अस्मिता के साथ
माया के बाग़ है यहाँ सजे माया के खेल हैं
शाम का वख्त हो चला, चलो! अब घर को

Saturday, 8 February 2020

न मालूम हुआ क्या था

इक खाली से मौसम में उम्र चुकाते हुए
तनहा एकदम अकेला सा ख्याल आया

तमाम इस जद्दोजहद की वजह क्या थी
क्यों युद्ध में जंगी योद्धा बन उम्र गुजारी

नंबर पढ़ाई शोहरत रुतबा पैसा  ही नहीं
हमने समझदारी भी लड़ते लड़ते कमाई

शतरंज की चौपड़ पे खेल खेले जी भर के
हमीं राजा, हमीं रानी, हमीं वजीर प्यादे थे

दोनों तरफ हारजीत जंगी ऐलान हमारे थे
हारे या हमीं जीते भी सारे मोहरे हमारे थे

न दुश्मन था सामने न ही फ़ौज का दस्ता
वजह थी क्या जो शूरवीरों सी उम्र गवायीं

अपने ही निशाने थे, तीर भी सारे हमारे थे
किसी ने कहा भी नहीं तुम्हारी जीतहार है

सरपट दौड़ शुरू हुई , गाजर बंधी पूँछ पे
माहौल जिसने दौड़ने को मजबूर किया था

बागों की सैर, वो चश्मे, वो खिलते कमल!
चाय की चुस्की, खाने का निवाला, मुहाल!

कहाँ वख्त था के दो घडी रुक इन्हे देखते
इनके साथ उनका हाथ अपने हाथो में लेते

पैसों का इंतजाम जितना भी हो कमतर था
कहाँ वख्त था जो अपने खिलोनो से खेलते

वख्त से दौड़ ख़त्म, जोश, सेहत भी ख़तम
ये सोच ताजा  है के न मालूम  हुआ क्या था

कुछ यूँ भी कहते है, सब बुढ़ापे की बाते है
सब कुछ लुटा के, हम भी ऐसे सोचा करेंगे

मुमकिन है ऐसा हो फ़िलहाल सब लुटा नहीं
मैंने तो जरा पहले, सँभलने की दस्तक दी है

इससे पहले जोश होश खत्म सेहत भी खत्म
सोच की सोच न हो के न जाने हुआ क्या था

08/02/2020
08:24 pm
Lata 

Sunday, 29 December 2019

चिरंतन यात्रा का राही



वो इस पार की बात और उस पार की यात्रा करता है 

मन से तटस्थ है मेरुदंड साधा हुआ है जिसने मध्य में

माया से जुदा नहीं पर माया से जुदा हुआ सा लगता है

चिरंतन यात्रा का राही, वो इस कालखण्ड का साथी है

कालखंड जो खंड खंड के खंड में हम खंड खंड साथ है 

स्वयं काल है कारण, ऐसे कार्य की कड़ी के हम साक्षी है 

Sunday, 22 December 2019

वो भाग्य से अर्धांगिन थी

बहुत खामोश पर हमेशा मुस्कराने वाला 
ऐसा जिसमे कोई कमी ढूंढे सा न निकले
ऐसा वो सजीला बांका  उच्च पदासीन था 
उस एक ऐसे की वो भाग्य से अर्धांगिन थी 
ये हर बात बाँटना चाहती बहुत बोलती थी 
के यूँ उसका शर्मीलापन कम हो ख़त्म हो
दोस्तों के संग शराब लेता तो गाल गुलाबी 
और एक जबरदस्त मौन को ओढ़ लेता था
दोस्त समझती थी उसे बहुत प्रेम करती थी 
तब इसने संकल्प लिया उसका मौन तोड़ेगी 
जो भी हो दिल में दिल की तह तक पहुंचेगी
ऐसा हुआ ! मौन टूटा इक दिन वो बोल पड़ा 
जो जो वो अपनी धुन में जिस तरीके से बोला
उसे सुन अवाक हो उसके बोल सारे ख़तम
उसका दोस्त गायब हो चुका था, ये कौन था?
ज्यूँ कोई सुन्दर वस्त्र में  कुरूप व्यक्तित्व था
जिसकी सोच की अपनी उड़ान थी,  दृष्टि थी-
उसके देखने का अपना अंदाज था, स्पर्धा थी 
और वो चुप , आखें  भरी, होंठ सिले थे उसके 
वो कभी बोल नहीं पायी उससे दिल की बात