Wednesday, 2 September 2020

सच कहना ...

क्यूंके ... तुमको सब पता है
क्यूंके ... तुमको सच पता है
सहमे...कुछ डरे क्यूं रहते हो
सच  से  घबराये  दिखते  हो
सच कहना ...

(इस पार डरे तो भीरु हो, उस पार से, तो अन्जाने हो)

क्यूं के... तुमको सब पता है
क्यूं के... तुमको सच पता है
तभी...किसी निरीह चिड़ी से
पंख में बच्चे  छुपाये  बैठे हो
सच कहना ...

(इस पार में हो कर्मा है, उस पार मेंतो प्रारब्ध है )

क्यूंके ... तुमको सब पता है
क्यूंके ... तुमको सच पता है
तुम्हारे... हाथ न रहने वाला
ये  सच  भी  फिसलने  वाला
सच कहना ...

(इस पार हाथ में नन्हा क्षण उस पार विस्तृत काल है)

क्यूंके ...तुमको सब पता है
क्यूंके... तुमको सच पता है
आत्मथरथराहट को छिपाते
तभी ...उपाय ढूंढते रहते हो
सच कहना ...

(इसपार तो मात्र प्रयास है उस पार फैला 'पुरुषार्थ' है)


बिजली ... कहीं ना  गिर जाये
शंकित ... घबराये से  रहते हो
जलन / तड़प  कम करने को
उसकी... देहरी पे जाते हो ना
सच कहना ...

(इस पार जो लगते संग्राम हैं उस पार  संग चलता 'पुरुषार्थ' है)

तनमन दग्ध जिस-जिस से
विष कम करने जाते हो ना
क्यूंके... तुमको सब पता है
क्यूंके... तुमको सच पता है
सच कहना ...


योगी... जो जीना है सिखाता
भय-मुक्त ... विश्वास दिलाता
फिर भी... तुमको सब पता है
क्यूं के... तुमको  सच  पता है
सच कहना ...

(इस पार देह का साथ है, उस पार अकेला चैतन्य अथाह है)

Part two

सच कहना ...

सारे विषय... तुमको पता हैं
अद्भुत तुम्हारा बौद्धि-बल है
सच में... तुमको सब पता है
क्यूंके... तुमको सच पता है
सच कहना  ...

(सूर्य की हजार फैली किरण में एक किरण के रश्मिरथी तुम)

तुमको... इतना सब पता है
कहो... कहाँ अञान तमस है
क्यूं के... तुमको सब पता है
क्यूं के... तुमको सच पता है
सच कहना ...

पराक्रम    पुरुषार्थ   तुम्हारा
कला विज्ञन गणित तुम्हारा
क्यूं के... तुमको सब पता है
क्यूं के... तुमको सच पता है
सच कहना ...

(एक किरण पे हो सवार चल पड़े तुम तो अनंतद्वार)

विषय महारथ, पारितोष-युक्त
सतत... अज्ञानी होने का भाव
मूल से... तुमको जोड़े रखता
क्यूं के... तुमको सच पता है
सच कहना ...

संगीत नृत्य लय थाप तुम्हारे
अखंड  ज्ञान  सैलाब  तुम्हारा
प्रकर्ति माँ की... गोद तुम्हारी
क्यूं के... तुमको  सच  पता है
सच कहना ...

पुरुषार्थ   धनी   प्रेम  अवतार
चलो... चलो ; थोड़ा और पार
पार!... क्यूं के अपार तुम्ही हो
क्यूं के... तुमको सच पता है
सच कहना ...

 (कर्मयोगी अनहोनी से न घबराना और कभी अनिष्ट न करना)

 उस  पार  भी यही  पुरुषार्थ है
प्रेम ऊर्जा  का  सुंदर संसार है
अजेय... न भूल जो किरदार है
क्यूं के... तुमको  सच  पता है
सच कहना ...


सच कहना ...

क्यूं के... तुमको सब पता है

क्यूं के... तुमको सच पता है



क्यूंके जानते हैं सभी ...

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जानते हैं सभी जानां- ये झूठ है

खिलखिलाते हँसते गाते नाचते

रहते हैं  सभी उसके साथसाथ

एक खूबसूरत से सच की तरह

 क्यूंके जानते हैं सभी ...


कुछ ऐसे ही; पेशे या किरदार

उलझे सुलझते जाते धागे जैसे

अपने अपने वख्त पे गाँठ तोड़

चले जाते खरम्मा, सच के साथ

क्यूंके जानते हैं सभी ...


अभिनय को कौन नहीं जानता

कलाओं से कौन वाकिफ नहीं

सभी जानते हैं सब कुछ मगर

रहते हैं खुश एक सच की तरह

क्यूंके जानते हैं सभी ...


नशे की बात  न करें आप क्यूंके

सभी के मयकदे अपने अपने हैं

सभी के प्याले, छलकते जाम हैं

सभी को बोतलें, सभी नशे में है

क्यूंके जानते हैं सभी ...


किरदारों आवाजों संगीत की गूँज

चरसी ठरकी में डूबे धुएं के कश

नशे में नशा और उसमे भी नशा

सजे उजड़ने को  पंडालों की तरह

क्यूंके जानते हैं सभी ...


पुरुष का पुरुषार्थ , स्त्री का समर्पण

रुचि में डूबे बालहठ की उपलब्धियां

उपलब्धियों से जुड़ती जाती सुविधाएँ

सुविधा में खो समाज सुदृढ़ हो जाता

क्यूंके जानते हैं सभी ...


गलत क्या ये कसमसाहट में देखो

बेचैनी में शक्ति के पाखंड में देखो

पीछेपीछे दौड़ते उन चेहरों में देखो

नर्मी के बदलते तेवर गरूर में देखो

क्यूंके जानते हैं सभी ...


और फिर जब सब्र के गगरे छलकते

बैठते भरम दूर करने भरम के साथ

भरमाते विष को काटते विष के साथ

और सच दूर खड़ा मौन इन्तजार में

क्यूंके जानते हैं सभी ...

Tuesday, 1 September 2020

मेरे जीवन के निबंध

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मेरे जीवन के निबंध उस्मे बंधे गद्यपद्य चंद बुद्धि और भाव संग बनते बंधते मेरेअनुबंध मेरे अपने सुरा-पान रस घोले जीवन गीत विस्तृत फैली सड़कें उन प चलते गीत मेरे
मेरे जीवन के निर्झर फूट बहे कलकलकल है जीवन की कोयल गीत सुर सजाती जाती मेरा फैला उन्नत नभ पसरी फैली धरा मेरी इंद्रधनुष इक पल का पुष्प-गंध भी है क्षणिक गीत लयित सुरतार पे साँस गति पल-पल की फाहे से हल्के स्वप्न घेरे मदहोशी में है फाग मेरे मेरे जीवन के छंदबोल बंसी-तान से बहे राग मेरे