Sunday, 26 February 2017

जाग रे मन जाग





जाग रे मन जाग, अपना सच्चा गुरु पहचान रे
जाग रे मन जाग, अपना सच्चा गुरु पहचान रे
जाग रे मन जाग

Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind

छज्जे ऊपरी सोये चढ़ी के,बीच पैठ तू रोया रे
जाग रे मन जाग, अपना सच्चा गुरु पहचान रे
जाग रे मन जाग

On roof climbed to sleep, in middle sit and cry 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind

सपनेहु सोया रे तू, जगतेहूँ सोया रे खोया रे तू
जाग रे मन जाग, अपना सच्चा गुरु पहचान रे
जाग रे मन जाग
Slept in dreams, woken up in sleep, and lost
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru
Awake O' mind
सप्त दलन पे महल गढ़ी के, डेरा तू बनायो रे
जाग रे मन जाग, अपना सच्चा गुरु पहचान रे
जाग रे मन जाग
Up of seven petals made a fort also stay there 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind

इड़ा सोई पिंगला सोई सुस्मन गई कुंहलानी रे
जाग रे मन जाग, अपना सच्चा गुरु पहचान रे
जाग रे मन जाग
Ida slept, Pingla slept. Susumna get shrivel 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind

जोगी सोये भोगी सोये रे, सोये बैकुंठ वासी रे
जाग रे मन जाग, अपना सच्चा गुरु पहचान रे
जाग रे मन जाग

Yogi in sleep, Lusty in sleep.  Dieties in sleep 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind

मोहनी को बनायो रानी सुनीति को तू दासी रे
जाग रे मन जाग, अपना सच्चा गुरु पहचान रे
जाग रे मन जाग
Made queen Maya , And servant to Wisdom   
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind
चौकीदार सुवाय दिए, चोरन करे निगरानी रे
जाग रे मन जाग, अपना सच्चा गुरु पहचान रे
जाग रे मन जाग

True Guards sleep and Thief in surveillance
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind

सुरति जगिहें मूरति जगिहें जगिहें मण्डल सारे
जाग रे मन जाग, अपना सच्चा गुरु पहचान रे
जाग रे मन जाग

Awakened will wake, Statues will awake, Galaxies will awake 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind


'ये भी' जगिहें 'वो भी' जगिहें, जगिहें सोये सारे
जाग रे मन जाग, अपना सच्चा गुरु पहचान रे
जाग रे मन जाग
They will wake, that will wake,  all will wake,  whoever in sleep 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind

राजा जगिहें परजा जगिहें,जगिहें वे मरते सारे
जाग रे मन जाग, अपना सच्चा गुरु पहचान रे
जाग रे मन जाग
King will wake, public will wake, also nearby to death will wake 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind  Awake, Know own true Guru 
Awake O' mind



25 - 02 - 2017
© lata 

Sunday, 12 February 2017

हाँ , मैं सिर्फ " वो " बीज हूँ/ Yes! Only I'm That Seed






आह ! मैं एक बीज हूँ
हाँ , मैं सिर्फ " वो " बीज हूँ।
कैसे बड़ा हो सकता हूँ
अपनी माँ के गर्भ में 
रहता हूँ मैं बीजरूप में
हमेशा से ; वहां " मैं "
विश्वास करो ! मैं तो
केवल बीज हूँ ; हमेशा से 


हमेशा से जो 
कठिनतम प्रयास में है
वृक्ष बन जाने के
हर समय , हर स्तर पे
हर तल के लिए
चाहे ये ह्रदय की धरती हो
या हो फिर दिमाग की
या फिर हो धरती मित्र-पञ्चतत्व की


मेरी ही  बेहतरीन खेती के लिए
प्रकर्ति सुन्दरतम है माध्यम
जो उचित पोषण सुलभ कराती है
उचित मौसम में , मेरे प्रयासों से
और मुझमे वो चमत्कारी क्षमता
अपने एक बीज के अंदर

वहन करता हूँ हजारों बीज 

किन्तु फिर भी मैं इक बीज हूँ
बौद्धिक प्रवीण-विश्वास समूह संग
विकसित हो जो स्वस्थ वृक्ष
बन जाना चाहता है
वृक्ष जो तैयार है
स्वस्थ फलो को पकाने के लिए
फल जो अपने जैसे ही
स्वस्थ हजारो बीजो को छिपाये है
ये एक बीज का अधिकतम
कौशल-प्रदर्शन है ; अपने प्रति .
अंततः एक बीज को ही जन्म दे सकता है
मुझे भलीप्रकार ज्ञात है , आराम पाता हूँ
जब मैं खुद को बीज रूप में विश्राम दे पाता हूँ
एक नन्हे शिशु जैसा वापिस दौड़ के
अपनी माँ की गोद में छुप जाता हूँ
तो ; मैं वही सिखा सकता हूँ , जो मैं हूँ
बीज से बीजरूप में जन्म लिया हूँ
वापिस बीज में ही लौट जाऊंगा
आह ! मैं एक बीज हूँ
हाँ , मैं सिर्फ " वो " बीज हूँ।

** "मैं "अनंत की व्यक्तिगत सत्ता के लिए

: translation :
Oh ! I'm Seed, Only I'm Seed How can I grow Old! In the womb of mother I'll reside as seed ever; There... Trust ! we're only seed forever. Trying hard to become Tree Each time on every plane, For every surface, Either land of heart, or It's Land of mind, or It's a play with friends elements ....! For best My cultivation - Nature is the best mediator - Provider of essentials nourishment In seasons with our efforts. And we have miraculous potential To carry infinite seeds inside of a Seed. Still; I'm One Seed only. With skill-sets of beliefs Ready to be a healthy tree Ready to ripe best fruit within, To manifest thousands of seeds Best potential to create "A seed" Can give Birth to A Seed Only. I knew it well, Feel rest To set me as a seed Like a small kid always try to Run back to find - Peace in Mother's lap So; can guide only what I've. I've taken birth as seed Go back in the seed again. Oh ! I'm A Seed, Only, I'm That Seed...........!! **The Trem "I" used for Infinite existence of Individual

© Lata's World

Wednesday, 8 February 2017

कुछ ज्ञात रहा तू, कुछ अज्ञात ही रहा


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तेरा छुपना भी अच्छा तेरा दिखना भी अच्छा तुझे जानना भी अच्छा रहा और जो न जाना, वो भी अच्छा ही रहा तू ज्ञात हुआ वो भी अच्छा
अज्ञात हुआ वो भी अच्छा
ज्ञात बन धीरज दे सहलाता रहा अज्ञात बनके तू कसौटी कसता ही रहा आहिस्ता आहिस्ता चलते इस सांचे का इस खेल का अंत क्या हुआ ! अंत में - कुछ ज्ञात रहा और कुछ अज्ञात ही रहा

Tuesday, 7 February 2017

आह्वाहन - अब तुम्हारी मर्जी..!

( कथा काव्य )

मैं इससे भी पार हुआ
मैं उससे भी पार हुआ ,
सभी राहों से गुजर
सभी राहों के पार हुआ 
अब खड़ा हुआ हूँ
नदी की इस उफनाती
शोर मचाती धार के ऊपर
अपना ही पुल बना के ,
( गूगल पे टाइप करो तो "पुल" को "पल" बना देते है , वैसे बात एक ही है , पल का पुल हो या पुल का पल )
तो ,
अब पुल बना के खड़ा हुआ हूँ
बीच धार के ऊपर ,
इसकी नित्यता पे मत जाना ,
अनित्य संसार में सब अनित्य है ,
दृढ़ता से अभी पैर जमा के
खड़ा हुआ हूँ ,
बुला रहा हूँ ,
उस पार का निमंत्रण दे रहा हूँ ,
पर मैं खड़ा हूँ बीच धार में
अपना पुल बना के , 
थपेड़े सहता हुआ , 
निमंत्रण देता हुआ , 
सैकड़ों आशीषों की वर्षा के बीच 
उफनती इस धारा के बीच , 
कभी तुमने मजबूत पुल 
टूट के बहते देखे है ! 
साथ वो सब भी बह जाते है 
जो भी तिनके इस पुल पे है , 
प्रकर्ति के कार्य में ; मैं बाधा कैसे ! 
मैं भी बह जाऊंगा 
जिस दिन ये पुल अपनी
अवधि पूरी करेगा। 
उनको देख , कितना समझना
न समझना , अब तुम्हारी मर्जी..!

माना के पुनराव्रत्ति होगी ,
इस पार से उस पार जाने को
फिर पुल बनेगा कोई -
नूतन पुल,
फिर वो ही निमंत्रण सुनोगे
वो ही हाथ उठेंगे ,
प्रकर्ति प्रबल है
समय के विस्तार में
हमारा विस्तार नगण्य है-
फैलाव सिमित है , 
होंगे हम ; फिर हम न होंगे
होगे तुम ; पर  तुम न होंगे ,
दृश्य रूप रस गंध स्पर्श सौंदर्य
और देह कब दोहराते है खुद को ,
उनको देख , कितना समझना
न समझना , अब तुम्हारी मर्जी..!

हाँ ! बाकि सब कुछ कुछ 
और वक्त का विशाल चाक पे 
घूमते कुछ तत्व यूँ ही रहेंगे, 
निःशब्द , संगीतमय , 
सुगंधमय और गहन मौन 
यूँ भी झिर्रियों से जो झांकता  
स्वाभाविक है ,  मन आतुर है 
दराज़ से रौशनी की किरण पा 
दौड़ पड़ता है तुरंत ह्रदय 
बंद दरवाजा खोलने को 
कुछ-कुछ से सब-कुछ 
समझना चाहता है 
लालायित "कुछ" को पूर्ण पाने को 
क्षुद्र रूप से और संक्षिप्त में पाते ही, 
ये जिज्ञासा  भी त्याग देती है 
अनजानी उस जिज्ञासा को , 
सर्वदा के लिए !
उनको देख , कितना समझना
न समझना , अब तुम्हारी मर्जी..!

अपने से लड़ के नहीं 
स्वीकार समझ आनंदित हो 
मैं खड़ा हूँ , बीच धार में !
ऐसा ही पुल बना लेना 
सब राहों से गुजर
नदी की मध्य धार पे 
खड़े हो पैर जमा लेना 
ऐसा ही .... 
पुल बना लेना 
दृढ़ता से खड़े हो 
तो ; आवाज दे देना 
फेंक देना अपने झोले को 
इस उफनती गड़गड़ करती 
शोर मचाती नदी की मध्य धार में 
और पार हो जाना 
क्योंकि पुल सामायिक है 
टिकते नहीं बह जाते है 
अपने साथ सब बहा ले जाते है 
अमृत की वर्षा थमती नहीं 
धार उफनती , रूकती नहीं 
अतिवेग, अतिप्रबल, अतिप्रचंड 
अतिसंगीतमय, सुंदर मनमोहक 
लुभावनी भंवर बनाती धार बहती 
मचलती काटती रौद्र रुद्रप्रिया
किनारो को समेटती अपने साथ 
उनको देख , कितना समझना
न समझना , अब तुम्हारी मर्जी..!

सब रहेंगे कुछ वख्त तक यूँ ही 
बस न हम होंगे न तुम होंगे न पुल होंगे 
होंगे तो कुछ संगृहीत ग्रन्थों में पुल के पल 
कुछ चित्र , कुछ सन्देश 
जो पता नहीं विस्मृत ह्रदय कैसे समझे 
बुद्धि कैसे समक्ष रखेगी !
उन राहों को , उन आवाह्नो को 
उन गीत के उन्ही बोलो को 
तुम कैसे सुन पाओगे 
उफ्फ्फ ! जब अभी नहीं .... !
तो कभी नहीं .....................!
और मैं अभी क्या कहता हूँ 
तुम क्या समझते हो 
अपना पूल (पल) बनाओ 
एक इस पे यदि 
सभी खड़े हो जाओगे 
बेचारा वैसे ही वख्ती है 
अभी टूट चरमरा के बह जायेगा 
स्वनिर्मित स्वविकसित सु-सृजनकर्ता
पार हुआ ही हूँ ,पर तुम !
सब इसके मध्य भी नहीं अभी 
इसकी तेज धार में बह जाओगे 
ब्रिज की संरचना !अभी विचार में 
प्रलोभन पार धुंध का , झिर्री से झांकता 
निश्चित ; हो नहीं पास भी - उसपार के ,
मध्य भी सुरक्षित नहीं उफनती धार से 
जान लो! यदि पुल तक पहुंचे भी नहीं 
दो पर्वत के मध्य ढलान पे बहती 
काल के आगोश में बांधती 
लीलती , कभी कलकल , 
कभी घड़घड़ करती 
सदियों से बहती यूँ ही , 
समेटती हम सब को 
ये पवित्र गंगधार है
उनको देख कितना समझना
न समझना , अब तुम्हारी मर्जी..!

© Lata Tewari
10:27am, before 22 mins