सत्य के आवरण
से बुने वस्त्रों में
लिपट , सत्य के
कलेवर से संवरी
उस बीते काल की
सुव्यवस्थित सुंदर
बेतरतीब जीवनशैली
सजाई उन अत्तियों से
थी अपनी ही बनायीं
आपत्तियों की जनक
सभी उन रचित
परिभाषाओं को
बिना समय व्यर्थ किये
चलो ! नयी परिभाषा बनाये ......!
संकल्पित देह जन्म ले
स्व मध्य चिन्ह से मिल
अंतिम निवास पे ठहरे
क्यूँ न जीवननदी सफर
सागर पे ही जा रुक-थमे
बीच में उथल पुथल से
किनारे स्वसंकल्प क्यूँ त्यागें
इस देह को अंतिम निवास,
आत्मगंग गंगसागर तो लेजाये
कुछ मिल जुल कर यूँ दोनों
इस जन्म का कर्ज चुकाएं
चलो ! नया संकल्प बनायें .....!
पत्थरों के तूफानों के
आघातों से ठहरी हुई
सहमी , किंचित शुष्क
किन्तु मद्धम हवाओं से
अभी भी भीगी मिट्टी
से उड़ती सोंधी सुगंध
जल का अनुमान कराती
हौले हौले डगमग करती
सुंदर पवित्र नदी को पुनः
कलकल छलछल स्वर से
जीवंत सतत चिर प्रवाह दें ,
चलो ! नया बाँध बनाये ......!
© Lata
13 12 2016
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