Friday, 30 September 2016

देखा है !

जिनके तार उलझउलझ के गुच्छा हो गए
बढ़ते हुए पेचोखम उलझ पेंच हुई जिंदगी 

अब सुलझाने की सूरत समझ आती नहीं
कर्म के कांडों में उन्हें ही उलझते देखा है 

बात न मेरी न तेरी न मजहब न सियासत
सारी कौम को बस यूँ ही भटकते देखा है

सिखाओगे क्या उन्हें ! उन अनर्थों के अर्थ
दलदल में पैदा हो वे उसी में फ़ना हो गए 

ख्वाहिशें जिन्दा रखने की हसरत जिनकी
सीखनेसिखाने में नकाम उन्हीको देखा है 

जिंदगी लंबी सही ये नन्ही है नाजुक बहुत
कसमसाते बुदबुदे को ; बुदबुदाते देखा है
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Lata Tewari
30-09-16

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