Saturday, 24 September 2016

लघु कथा काव्य "रोज की तरह"


रोज की तरह 
भाप ; मद्धम मद्धम 
ऊपर को उठ रही थी
तीन दल की नाजुक
तुलसी की सुगंध
जतन से चाय में बसी थी
थोड़ा भी ढक्कन या उबाल
इधर उधर ; तो सुगंध छू
ऐसी बेशकीमती वो
सुबह की चाय ..!
और दो कप रक्खे पास पास ,
एक छोटा एक बड़ा ,
सालों की आदत
ऐसे ही प्राकर्तिक मनस्थिति से
अलग अलग आकार के
कप में चाय पीने की ,
आदतन,
सुबह की शांति ,
चाय का पतीला और
छन्नी हाथ में ,
ताजे ताजे कप धो के ,
चौके के स्लैब पे थे
और चाय उड़ेलना शुरू हो गया,
कि मन सालो के
क्यों , कैसे , कब , में उड़ चला
सेकेण्ड से भी कम का वख्त बीत होगा
चौंक के वापिस आया ,
देखा ! चाय छोटे कप से बाहर निकल
स्लैब पे बिखर पास रखे
बड़े कप की तरफ बढ़ के
उसको भी अधिकृत कर रही थी ,
मजे की बात
वो छोटा कप अभी आधा ही भरा था
फिर भी छलक रहा था ,
बड़ा कप खाली ही था

ढलान की धार संतुलन में कहाँ  !
तरल का सरल काज बहना फैलना
सो उसकी तली में ही -
उसका बिखरना शुरू हो गया
जब थोड़ी चाय बिखर गयी
तो  तन्द्रायुक्त मन सहज चौंका ,
उस पतीले को पास रख
स्पॉन्ज के कपडे को
गीली स्लैब पे रख, 
कप हटाये
आदतन ; एक इधर रखा एक उधर
बिना सोचे यांत्रिक तौर पे

एक इस कोने दूजा उस कोने पे 
स्वतः दूर दूर स्थापित , फिर -
फैली चाय सोख्ता कपडे से
तुरंत साफ़ हो गयी , वो स्लैब
फिर से वैसा का वैसा साफ़ हो गया ,

बेतरतीब से यूँ ही दूर-दूर रखे
उन कप को फिर से संयोजित कर 

दोबारा बची चाय उड़ेली
सुंदर ढंग से ट्रे में रक्खी ,
और वो ले के गयी तो
कनखी से एकनजर देखा ,
बिस्तर पे वो आधे लेटे ,
तकिया का ढोक लगाए थे
आँखे बंद मर्मर सी ख़र्राटे
सुन; पास चाय रख - ढक के
कमरे से बाहर आ गयी , पर
इस चाय बनाने गिरने साफ़ करने
और दुबारा सजावट के साथ परोसने
की समूची प्रक्रिया में
एक बड़ी उलझी जल-गुत्थी को
बहाव की कड़ी मिल गयी
कहावत याद कर उसके अधर पे
मौन-मुस्कराहट भी आ गयी ~ " रायता
जब भी जिस कारन से भी -
फैलता है तो खुद ही सावधानी
से बटोरना भी पड़ता है "
और दूसरी बात ~
" स्त्री का चौका एक रहस्य से भरा
छोटा सा निहायत निजी
उसका अपना कोना है ,
जिसमे अनेक रहस्य
वास करते है ,
स्त्री के मित्र है
इतने करीब की वो
कभी उनको उजागर नहीं होने देती ,
इसी में उन रहस्य
और उस स्त्री का
अनुपम सौंदर्य बरक़रार है ,
वे भी उसके सच्चे मित्र है ,

यथा-शक्ति , कथा-अनुसार
तथा सभी तरंगित मिलजुलकर
मदद करते ही रहते है।
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written by :

Lata Tewari
25/09/2016,8am

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