बहुत कहा तो कह दिया " जल "
क्यूंकि गड्ढे को समतल करता भेदरहित बहता तू ।
बहुत कहा तो कह दिया " हवा "
क्यूंकि सुगंध-दुर्गन्ध साथ ले शुन्य भरता रहता तू !
बहुत कहा कह दिया लहरी के "स्वर"
क्यूंकि गीत बन संगीत-सुरनदी में बहता रहता तू !
बहुत कहा कह दिया " रंगोल्लास "
रंग उल्लास शुन्य सा च्युत अपरिभाषित हुआ तू !
बहुत कहा तो कह दिया " समदर्शी "
क्यूंकि अनंत व्योम सा फैला जीवन देता रहता तू !
बहुत कहा तो कह दिया " संकेत "
क्यूंकि संकेत आगे क्या कहु ! समझ आता नहीं तू !
बहुत कहा तो कह दिया " शुन्य "
महा शुन्य बन महा मौन में महा भाव बन रहता तू !
परिभाषित परिभाषाविहीन हुआ
मैं असमर्थ हुआ नटनागर स्मित देता दूर खड़ा तू !
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