Sunday, 6 December 2015

बहुत कहा तो कह दिया !



बहुत कहा तो  कह दिया " जल 
क्यूंकि गड्ढे को समतल करता भेदरहित बहता तू । 

बहुत कहा तो कह दिया " हवा " 
क्यूंकि सुगंध-दुर्गन्ध साथ ले शुन्य भरता रहता तू ! 

बहुत कहा कह दिया लहरी के "स्वर
क्यूंकि गीत बन संगीत-सुरनदी में बहता  रहता तू !

बहुत कहा कह दिया " रंगोल्लास "
रंग उल्लास शुन्य सा  च्युत अपरिभाषित हुआ  तू !

बहुत कहा तो कह दिया " समदर्शी "
क्यूंकि अनंत व्योम सा  फैला जीवन देता रहता तू !

बहुत कहा तो कह दिया " संकेत "  
क्यूंकि संकेत आगे क्या कहु ! समझ आता नहीं तू !

बहुत कहा तो कह दिया " शुन्य "
महा शुन्य बन महा मौन में महा भाव बन रहता तू ! 

परिभाषित परिभाषाविहीन हुआ 
मैं असमर्थ हुआ नटनागर स्मित देता दूर खड़ा  तू !

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