Thursday 29 August 2019

कई मंजिल का पुराना मकान है

कई मंजिल का पुराना मकान है

ऊपरी वाली मंजिल वर्षों से बंद है

उस मंजिल तक पहुँचने के लिए

सीढियाँ फिलहाल गर्द से भरी हैं


ये मेरा इक अकेले का बनाया नहीं

पीढ़ियों का संजोया हुआ मकान है

पीढ़ी से गुजरता हुआ साफ़ सुथरा

धीरे धीरे लोग कम मंजिले बंद हुई


याद है रौशनी से धुला  मेरा मकान

ऊपरी माले में थी बुजुर्गों की बैठक

खिड़की से दिखती बारिश की झड़ी 

दूर आसमाँ पे खिला अपना इंद्रधनुष


छज्जे में खिलती हुई भोर की सुबह

दोस्त तोता पिंजरे में बोले राम-राम

याद है छत की मुंडेर पे आ के बैठा

मोर रात भर चमकते सितारे चुगता


पर अब कई बरसों से माला  बंद है

अब कोई भूले वहां आता जाता नहीं

नीचे के घर में भी कई कमरे बने है

बच्चे कभी कभार मेहमान  बनते है


जिन्हे पता नहीं घर में ऊपरी माला है

जिसमे कभी खुशियां तोता था मोर था

मेरी मंजिल पे संगीत था बेहद सुरदार

नए होने की कोशिश में थोड़ा बेसुरा है


मेरे बच्चे भी अजब पहचान बदलते हैं

जैसे पहले थे इस बार वो नहीं लगते हैं

खुदा जाने वो ही आते  है या कोई और

न मालूम इत्ती जल्दी रंग में कैसे ढलते है


शराब नहीं पीता अपना पयला भरता हूँ

नशे में  जीने की ताकत बढ़ती जाती है

सिगरेट नहीं  पीता पर माचिस मांगता हूँ

जायेंगे बहुत कुछ जलाके ख़ाक करना है


मेरे इस मकान में बस दो जीने उतर के

अँधेरा तहखाना है किसी को नहीं मालूम

ख़ामोशी का दिया यहाँ चुपचाप जलता है

जहां सुकून सोया हुआ मेरा बेफिक्र होके


बस इत्ती  गुंजाइश मेरे वास्तेउसने छोड़ी है

जब मैं तक के  वो दो सीढियाँ उतर पहुंचू

पहलु में लेट जाऊं गले लग केआहिस्ता से

उसके बाजू में सर रख के चुपचाप सो जाऊँ



© Heart's Lines / Lata 


* प्रेरणा स्रोत :  गुलजार साहब 

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