Sunday, 30 July 2017

"संवाद" पे वाद

-: संवाद :-
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"संवाद" पे वाद उसपे
वाद-विवाद, घमासान
कितने शब्द व्यर्थ हुए
तिक्त खारे चाशनी में
कितने शब्दों के जोड़
कैसे कैसे वाक्य बहुल
आवरण में लपेट बोले,
हाथ भी थामा हुआ था,
जिस्मानी दूरी थी नहीं,
राईरत्ती भी अंतर नहीं
सुजान उसअभास को
कोई अंतर नहीं पड़ा
क्यूं के संवाद था नहीं
संवाद का मर्म हैअभी
धूमिल, दिलों में धुआं
आदर्शवादिता नहीं ये
सच्चाई है के जब सारे-
शब्द खर्च, मौन उतरे
कहने सुनने को बचे
न बाकि, तो फिर जो
बच रहता किन्ही भी
दो के बीच वो संवाद
बाकी तो वाद-विवाद
वार्तालाप के प्रलाप है
गठ-बंधन का अंतिम
एक कृत्रिम-प्रयास है
फल गया या नहीं भी
जगन्मिथ्या चहुँ पसरी
मिथअंश भीजब मिटा
मिथ्या साँसे लेती रही
Om Pranam
© Lata/ 30/07/2017/ Mor: 10 am

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