( वार्ता - यात्रा - दर्शन )
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मंदिर आँगन में हवन की अग्नि सुलगाई
उसने कहा उस छोर को देखो तो लपट जहाँ लीन होती है
मैंने संकल्प - जल हाथ में जो लिया
उसने कहा सही यहीं इस बूँद में बस थोड़ा और गहरे तैरो
मैंने मंत्रोचार संग हवा में हाथ लहराया
उसने कहा रुको वो देखो, वो दो उँगलियों के बीच बैठा है
मैंने चार को बांध एक ऊँगली उठाई
उसने कहा देखो अभी-अभी वो ऊँगली कोर पे जा बैठा है
आह्वाहन कर उतरे सागर गहराईयों में
उसने कहा वो देखो, वो रहा वह, वहां जरा और नीचे चलो
साथ ले उसे कैलाश की चोटी पे जा पहुंचा
शुद्धश्वांस ले कहा आ पहुँचे हो ! दो सूत चढ़ाई और करो ! "
संग में सात आसमानो के पार हम पहुंचे
सातवें आसमां पे खड़े हो बोला "बस थोड़ा और ऊपर चलो ! "
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