Friday, 14 August 2015

संतुलन ( मैं ही हूँ )


तुम कब थे दूर मुझसे
जन्म से साथ हो तुम
हर पल आती जाती
मोती से साँस-माला में
पिरोये हुए हो तुम ...
प्रथम सांस अंदर गयी
साथ ही ह्रदय द्वार से
धमनी में रक्त बन बहे
सांस जो बाहर को आई
अशुद्धियों को साथ लायी
श्वांस के माध्यम से
आवागमन क्रम मध्य में
तुम बीजरूप जीवनस्वरूप
फल बन मध्यकील समान
तुम निरंतर कहते रहे -
" देखो मुझे मैं हूँ संतुलन
जीवन में मुझे ही पाओगे
हवा में सुगंध औ धार में
मुझे ही बहता पाओगे ...!
हरपल कदमदम हमदम
दो विपरीत ध्रुवों के मध्य
शिव सा मुझे ठहरा पाओगे
दिशा,रंग,सौंदर्य-असौंदर्य
आती जाती दो श्वांस मध्य
ठहरा हुआ रहस्य मैं ही हूँ
ज्ञान अज्ञान ऊंचाई गहराई
निरंतर साथ जन्म से लेकर
मृत्यु तक साथ मेरा पाओगे.."

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