Thursday, 15 October 2020

दिन की कहानी



मुन्धेरा है सूरज अभी नहीं निकला

जरा में रौशनी होगी चूल्हा जलेगा

सौंधी चाय कपों में धुंआ उड़ाएगी

खटिया पे माँ! जिसे घेर सब बैठेंगे
आने वाले उत्सव चर्चा का मुद्दा है

चाय की चुस्की बजट की बात है

कुछ दिन बाद त्यौहार की तड़क

उसके लिए भी जरुरी तैयारियां हैं

हर चुस्की में जाड़ा खटखटाता है

बात चीत में हंसी की खनखनाहट

आँगन में होती पायल की छनछन

वृद्ध आँखों में मुस्कराती चमक है

चाय की चुस्की सूरज की लाली है

दिन का आरम्भ मिलने का तांता

काम पे जाने की जल्दबाजी भी है

बस यूँ ही दिन चढ़ेगा शाम थकेगी

संध्या चूल्हा जलेगा चाय खौलेगी

फिर रात्रिभोज में सब इकठा होंगे

खटिया पे माँ! जिसे घेर सब बैठेंगे

कुछ कुछ किस्सा दिन की कहानी

एक दूसरे का बोझ... हल्का करेंगे

अपने अपने कमरों में सोने जायेंगे

यूँ ही दिन महीने साल बीत जायेंगे

अब वृद्ध वो नहीं , कोई और होंगे

वही मुन्धेरा सूरज भी नहीं निकला

जरा में रौशनी होगी चूल्हा जलेगा

सौंधी चाय कपों में धुंआ उड़ाएगी