Tuesday, 19 May 2020

यकीं करो ; आसान है!




बहुत मुश्किल कहाँ है

(Music: LIQUID_TIME)


बहुत मुश्किल है 
नित्य ईश्वर को पराजित होते देखना
फिर भी उन पर आस्था बनाये रखना..
बहुत मुश्किल है
नित्य सत्य को टूटते देखना
और फिर भी विश्वास करना कि अंततः विजय इसी 
की निश्चित है..
बहुत मुश्किल है 
दीन निर्बल को रोते बिलखते देखना
और विकास की बातें सुनना..
बहुत मुश्किल है 
इंसानों के कुकर्म गिनना 
फिर उसे इंसान कहना..
बहुत मुश्किल है 
अपमान के घूंट पीना
फिर भी समर्पण करना..
बहुत मुश्किल है
हज़ारो किलोमीटर दूर बैठे प्रियजन से कहना
कि तुम बहुत याद आते हो..
आसान नहीं है अविश्वास के स्पष्ट प्रमाण होने के 
बावजूद
आंखे मूंद विश्वास करना..
बहुत मुश्किल है लाख कड़वाहटों के मध्य प्रेम चुनना और हर बार चुनना..                                                                                                                                                                                                                                  ~निधि~


सच में; मानती हूँ 

भाव वेदना जो  बाह्य पे आश्रित 

बाहर .......अप्रत्यक्ष को .......... पकड़ना 

मुश्किल ही नहीं....नामुमकिन भी है।



इंसानो की इंसानियत को 
परमात्मा के प्रमाण को 
आस्था का बिखराव को 
टूटती आस की लौ को 

सत्य को चटकते देखना 
अपमानित हो पुनः पुनः 
उसी पे समर्पित होना 

कड़वाहट के घूँट पी 
बारंबार प्रेम चयन करना 
अविश्वास पे विश्वास टिकाना
सच में ; मानती हूँ  
आसान कहाँ !

असंभव और विचलित कठिन तुम्हारा मैंने धैर्य से सुना 
बेहद आसान को जरा  मानस के राजहंस  गौर से सुनो 

पंचेन्द्रियों के सघन मंथन से जो 
सागर सी हिलोरें लेती वेगवान नदी उमड़ी 
*जरुरत बन , *सम्बन्ध बन 
*प्रेम बन , *विश्वास बन , *आस्था बन 
*पीड़ा बन , *अपमान बन,  *राग बन , *विराग बन 

अज्ञानता से भर अविश्वास की पीव टपकती 
हृदय की अग्नि से दहकती जलन बन 
आँखों से छलक छलक छलक जाती है 

गहन दुःख अनुभूति है मात्र पंचेन्द्रियों की 
है आनुभूतिक-असफलता की शौर्य गाथा 
इस के सुख की चाहत तुम्हारी नहीं 
तुम्हारे अपने जीवन के सुखरस को पीती जाती
जरा सा जो पा लिया ये सुख से मचल उठेगी 
जैसे खोने से दुःख से मचल मचल जाती  है 

ये मचले या वो मचले
इन्द्रियों की आत्मा पे विजय और शक्ति की पराजय अच्छी नहीं 
यकीं करो ; शक्ति का ह्रास ही है ; वर्धन नहीं 



तुम्हारी घनी अज्ञानता अपने प्रति 
चिंता का विषय है

लहलहाते मन रुपी क्षीर-सागर की देह पे 
उभरे सुदृढ़ रीढ़ से अडिग सु-मेरु पर्वत पे  

नागों के नाग  'वासुकी'  को लपेट 
ज्ञान के सात-बिंदु पर्वत अपनी देह में समेटे 
अपने  ही - देव और असुर को मन-मंथन की भूमि पे 
 प्रतिद्वंदी सा समक्ष खड़ा कर

हे ऐश्वर्यवान ! इस मंथन में एक एक नग धन ऐश्वर्य झोली में बटोरते जाना है 
तब ही तो अंत में अमृत-कलश पे  तुम्हे कमल खिलाना है 

*स्मरण रहे ! 
संख्या में दानव *अधिक होंगे, देव *अल्प
दिशा आवंटन में देवों को फन और स्वयं चतुर विषधर की पूँछ पकड़ेंगे 
तभी तो परास्त होते  देवों के पक्ष में विश्वसुंदरी उतरेगी 
असुरों को भ्रमित करती अपनी मदिरा कलश का पान ले 
 असुरो को एक कतार केअंकुश में ले , तब ही तो देवो का शक्ति संचार कर सकेगी 


सच में ; मानती हूँ 

बाहर परोक्ष को पकड़ना 
मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। 

 पर ! मानस के हंस 
उतना ही सरल है 
स्वयं के अन्तस् से जुड़ जाना , यकीं करो 


यकीं करो ; उतना ही सरल है 
बाह्य से ठीक उलट , जुड़ना

अपना तप से पवित्र हुआ जल कमंडल ले 
अन्तस् को चल पड़ना

यकीं करो ; जरा मुश्किल नहीं,  स्वयं पे  विश्राम ले,  विश्वास करना

* मैं इंसान हूँ -
* अपने प्रेम पे -
* समर्पण पे -
* अपनी आस्था पे -
* अपने होने पे -

अपने इस विश्वास पे विश्वास करना 
यकीं करो ; आसान है
जरा मुश्किल नहीं।


आसान है 
अवसाद से उपजे नैराश्य के 
भाव से निकलना
बिखर के पुनः जुड़ना 

सुनो ! आसान है 
मीलों दूर को हिम्मत देना 
अपना प्रेम देना 
अपना हौसला देना 
आसान है 

आसान है आँखें मूँद 
अविश्वास पे विश्वास करना 
यकीं करो ; आसान है


जरा मुश्किल नहीं

'अपने होने पे' भरोसा करना ; आसान है

उस तिल तिल मरने से , ये तिल तिल जीना ; आसान है
यकीं करो , आसान है ; जरा मुश्किल नहीं


यकीं करो आसान है ; जरा मुश्किल नहीं


Thursday, 7 May 2020

नैसर्गिक सौंदर्ययुक्त पुष्प


“If we could see the miracle of a single flower clearly, our 
whole life would change.” 

“अगर हम एक भी फूल के चमत्कार को स्पष्ट रूप से देख 
सकते हैं, पूरी जिंदगी बदल जाएगी। ”
~ Buddha


बीज था पहले 
फुहारें! पौध इसको कर गयी
मौसम पे यही पौध 
कलियों और फूलों से भर गई

वो ज़रा भारी थे.... 
अनूठे रंग सभी उसके अपने थे
सुगंध हो बहे नहीं 
पंखुड़ी से लिपटे-लिपटे झर गए

होने से अपरिचित 
उपस्थिति से भी अन्जान था
ज्यादा नहीं कहूँ तो 
सुंदर प्रकति का उपहार था 

कुछ तितलियाँ भी थीं
जो रूप-लावण्य पे मंडरा रहीं
पराग असर में मदी था 
जो हवा में उड़उड़ बिखर रहे थे  

देखो तो मधुमख्हियाँ
कितने भाव इसके बढ़ा गयी
अहंकार में चूर
पुष्पलड़ी बोझ से ढलक गयी 

खिलावट को समझे
के पहले डाली से ये झर जाए 
सौम्य खुशबु उड़ा ये 
जीवन-स्पंदित सुखद दे जाये 

उसका अंत पता था 
क्यूंकि उम्र  कई बरस ज्यादा थी 
सोच मे पड गयी 
क्यूंकि इक सोच ही मेरे पास थी 

गर हवाएं न होती 
सच्च ! ये निरा जंगली ही रहता
हवा ने खुशबू उड़ाई
उसपे इंसान ने ताज पहना दिया

एक बार पुनः उसे 
अपने होने का भास होने लगा
घने तमस से निकल 
पुष्प! ज्योतिर्बिंदु ओर  बढ़ने लगा 

नन्हे सतत  प्रयासों से
पूर्णता को उपलब्ध वो होने लगा
अपने होने का अर्थ पा
जीवन-ज्योति कलश छलकने लगा 

अंकुरित बीज में से
सुगन्धित पुष्प-पल्लवित होने लगा
धूपहवापानी से मित्र 
अविचलित सुलभ क्रीड़ा करने लगा