Friday, 27 April 2018

फाल्गुन से वे सात रंग




हम रंग छुड़ाते ही रहे 
रंग घेरते, रंगते ही रहे 
ठान ली थी हमने अब 


दूध दूध ओ पानी पानी 
अलग अलग हो रहेगा 
देवदानव के सोपान में


श्यामल या के श्वेत रंग 
कड़ी के अंतिम रंग थे 
सोचा! युति असंभव हैं 
हाकिम एकही देह का

ठाना था ! स्व-भाव की 
गहराई से तराश हीरा 
खोज, बाहर ले आएंगे 


हम कोशिश करते रहे 
सातों रंग हमें घेरते रहे 


चित्रकार का ब्रश, हम 
नितनए रंग में रंगते रहे
आजभी समझसे ये परे 
मूल मेंश्वेत! या श्याम हैं

या सब रंग की उपज हैं 
जो रंग चाहे हावी हो ले 
औ हम बेबस लाचार हैं 


फाल्गुन वे संग खेल रहे 
हम थे खुद से बचते रहे 


सोचते ही थे गुमसुम के
बयार कहाँ से बह चली 
खिले पराग से सुर्ख रंग
  खुशबु... फैलाते...

        झर गए ...

कहो प्रिय ! इसमें से तुम्हे क्या दे दूँ



कथा कुछ भी हो, ये पटकथा मेरी है 
दवात-स्याही लेख-लेखनी ये ऊँगली 
Any type of Story but script is mine 
Bottle-Ink writeup-pen these fingers

जिंदगी कैसी भी है, सुनिश्चित मेरी है 
मिलते परिणाम जो हैं सब मेरे ही हैं 
however life it is , sure it is mine
whatever results are only mine

प्रेम की फलती फूलती पौध, मेरी है 
जन्म मेरा मृत्यु मेरी साँसें मेरी ही है 
the tender plant of love is mine
birth mine death mine breaths are mine

कहो प्रिय! इसमें से तुम्हे क्या दे दूँ 
तुम मुझे वो दे दो, जो भी तुम्हारा है
Tell me, Dear, what I can give you from these
and you may give me whatever is yours