कई मंजिल का पुराना मकान है
ऊपरी वाली मंजिल वर्षों से बंद है
उस मंजिल तक पहुँचने के लिए
सीढियाँ फिलहाल गर्द से भरी हैं
ये मेरा इक अकेले का बनाया नहीं
पीढ़ियों का संजोया हुआ मकान है
पीढ़ी से गुजरता हुआ साफ़ सुथरा
धीरे धीरे लोग कम मंजिले बंद हुई
याद है रौशनी से धुला मेरा मकान
ऊपरी माले में थी बुजुर्गों की बैठक
खिड़की से दिखती बारिश की झड़ी
दूर आसमाँ पे खिला अपना इंद्रधनुष
छज्जे में खिलती हुई भोर की सुबह
दोस्त तोता पिंजरे में बोले राम-राम
याद है छत की मुंडेर पे आ के बैठा
मोर रात भर चमकते सितारे चुगता
पर अब कई बरसों से माला बंद है
अब कोई भूले वहां आता जाता नहीं
नीचे के घर में भी कई कमरे बने है
बच्चे कभी कभार मेहमान बनते है
जिन्हे पता नहीं घर में ऊपरी माला है
जिसमे कभी खुशियां तोता था मोर था
मेरी मंजिल पे संगीत था बेहद सुरदार
नए होने की कोशिश में थोड़ा बेसुरा है
मेरे बच्चे भी अजब पहचान बदलते हैं
जैसे पहले थे इस बार वो नहीं लगते हैं
खुदा जाने वो ही आते है या कोई और
न मालूम इत्ती जल्दी रंग में कैसे ढलते है
शराब नहीं पीता अपना पयला भरता हूँ
नशे में जीने की ताकत बढ़ती जाती है
सिगरेट नहीं पीता पर माचिस मांगता हूँ
जायेंगे बहुत कुछ जलाके ख़ाक करना है
मेरे इस मकान में बस दो जीने उतर के
अँधेरा तहखाना है किसी को नहीं मालूम
ख़ामोशी का दिया यहाँ चुपचाप जलता है
जहां सुकून सोया हुआ मेरा बेफिक्र होके
बस इत्ती गुंजाइश मेरे वास्तेउसने छोड़ी है
जब मैं तक के वो दो सीढियाँ उतर पहुंचू
पहलु में लेट जाऊं गले लग केआहिस्ता से
उसके बाजू में सर रख के चुपचाप सो जाऊँ
* प्रेरणा स्रोत : गुलजार साहब
ऊपरी वाली मंजिल वर्षों से बंद है
उस मंजिल तक पहुँचने के लिए
सीढियाँ फिलहाल गर्द से भरी हैं
ये मेरा इक अकेले का बनाया नहीं
पीढ़ियों का संजोया हुआ मकान है
पीढ़ी से गुजरता हुआ साफ़ सुथरा
धीरे धीरे लोग कम मंजिले बंद हुई
याद है रौशनी से धुला मेरा मकान
ऊपरी माले में थी बुजुर्गों की बैठक
खिड़की से दिखती बारिश की झड़ी
दूर आसमाँ पे खिला अपना इंद्रधनुष
छज्जे में खिलती हुई भोर की सुबह
दोस्त तोता पिंजरे में बोले राम-राम
याद है छत की मुंडेर पे आ के बैठा
मोर रात भर चमकते सितारे चुगता
पर अब कई बरसों से माला बंद है
अब कोई भूले वहां आता जाता नहीं
नीचे के घर में भी कई कमरे बने है
बच्चे कभी कभार मेहमान बनते है
जिन्हे पता नहीं घर में ऊपरी माला है
जिसमे कभी खुशियां तोता था मोर था
मेरी मंजिल पे संगीत था बेहद सुरदार
नए होने की कोशिश में थोड़ा बेसुरा है
मेरे बच्चे भी अजब पहचान बदलते हैं
जैसे पहले थे इस बार वो नहीं लगते हैं
खुदा जाने वो ही आते है या कोई और
न मालूम इत्ती जल्दी रंग में कैसे ढलते है
शराब नहीं पीता अपना पयला भरता हूँ
नशे में जीने की ताकत बढ़ती जाती है
सिगरेट नहीं पीता पर माचिस मांगता हूँ
जायेंगे बहुत कुछ जलाके ख़ाक करना है
मेरे इस मकान में बस दो जीने उतर के
अँधेरा तहखाना है किसी को नहीं मालूम
ख़ामोशी का दिया यहाँ चुपचाप जलता है
जहां सुकून सोया हुआ मेरा बेफिक्र होके
बस इत्ती गुंजाइश मेरे वास्तेउसने छोड़ी है
जब मैं तक के वो दो सीढियाँ उतर पहुंचू
पहलु में लेट जाऊं गले लग केआहिस्ता से
उसके बाजू में सर रख के चुपचाप सो जाऊँ
© Heart's Lines / Lata
* प्रेरणा स्रोत : गुलजार साहब
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