Thursday, 23 April 2020

क्षमाक्क्षमाक्क्षमा



निराकार से साकार, या साकार से निराकार कहूं

अधूमिल सत्य तुम्हारा है

करोड़ों सूर्य परिक्रमा करते अथक जिसकी सर्वदा

ज्योतिर्पुंज रुप  तुम्हारा है 

जिनकी विशाल देह के सूक्ष्म-बिंदु भाग में वसित 

 हमारे भू अक्ष सौर हैं 


लाखों धरती समेटे तुम अनेक आकाशगंगाधारी
प्रचंड सूर्य पुरुष तुम 

किस मुँह तुम्हारी भव्ता कहूं इन नैनो से न दिखे 

आकृति निराकृति तुम्हरी 

तुम्हारी भाषा समझूँ, किस मुख कहूं, सूक्ष्मअनु  मैं

संज्ञानी  ऋषि नहीं हूँ 


किन्तु वेदो की उत्पत्ति सन्दर्भ गहराई जान चुका

परन्तु ज्ञानी नहीं हूँ 

चराचरसृष्टि में साहसी कृतध्न मनुज तुम्हारी संतान

हे! देव देवी क्षमाक्क्षमा

महाशक्ति स्वामी श्री भगवती समेत श्री भगवन नमः

शीर्षः क्षमाक्क्षमाक्क्षमा

कैसे कहूं जन्म ले क्या क्या अक्षम्य अनर्थ नहीं हुए

आकंठ ग्लानियुक्त हूँ 

मृत्यु तांडव,दसों दिशा में पुनः  दसमुखी उत्पाती हो 

उलझा अधर्मजाल में 

अक्षम्य अपराध बोध शीश झुका तुम्हारे सम्मुख खड़े 

पाहिमाम देव पाहिमाम  



अल्प बुद्धि मैं मानव क्या समझ समझूँ क्या समझाऊं 

सुमार्ग सुमंगलआप सुझावो  

विधिना खेल, माया के जाल, नाथ अशक्त गुहार करूँ 

प्रभु ! कैसे शुभता को पाऊं 

घोरबवंडर गल्प हो रहे जीवन काल की चाल न समझुँ

देव करो क्षम्य मेरे अक्षम्य 



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