वो इस पार की बात और उस पार की यात्रा करता है
मन से तटस्थ है मेरुदंड साधा हुआ है जिसने मध्य में
माया से जुदा नहीं पर माया से जुदा हुआ सा लगता है
चिरंतन यात्रा का राही, वो इस कालखण्ड का साथी है
कालखंड जो खंड खंड के खंड में हम खंड खंड साथ है
स्वयं काल है कारण, ऐसे कार्य की कड़ी के हम साक्षी है
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